धर्म-अध्यात्म

Bhagvat katha भक्ति में समर्पण का भाव होता है, मैं-मेरा, अपना-पराया का नहीं- स्वामी वेंकटेशप्रपन्नाचार्य महाराज

नेमावर (संतोष शर्मा)। भागवत ग्रंथ, मनुष्य के जीवन का दर्पण है। भगवान से बढ़कर कोई हमारा हितैषी नहीं है। भगवान कहते हैं सांसारिक क्रिया को नियमित प्रतिपादित करो, किंतु मुझे भुलों मत। दिव्य आत्मा को भगवान नाम संकीर्तन वाले आभूषण से श्रृंगारित करों।

श्रीबालमुकुंद सेवाश्रम (अन्नक्षेत्र एवं संस्कृत शिक्षा) नेमावर में श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से गया पीठाधीश्वर वेंकटेश प्रपन्नाचार्य महाराज ने भक्ति का पाठ समझाया। संतश्री ने बताया कि पावन पुरुषोतम मास का एक-एक क्षण उपयोगी है। अंतिम समय तक हरिनाम स्मरण करना है। इसको भुलना ही हमारे दुख का कारण है। आत्मा का संसाधन भजन ही है। भजन से ही जीवन की सफलता का भरण होगा। उपस्थित श्रद्वालुओं को मन की स्थिति समझाते हुए कहा कि मन का स्वभाव भटकना ही है। स्पष्ट दिखता है बीमार मन ही होता है, आदमी नहीं। जिस प्रकार शरीर में हर अंग का स्थान फिक्स है किंतु मन का स्थान कहां है आज तक पता नहीं चला। समस्त शास्त्र मन को समझाने में लगे हैं।

मन तृष्णा से दुखी है और तृष्णा समाप्त ही नहीं होती। प्रतिकूल परिणाम पर मन दुखी, अनुकूल परिणाम पर मन आनंदित होता है। मन की अनुकूलता-प्रतिकूलता से ही मानव में रोग उत्पन्न होता है। इस पर विजय प्राप्त करने के लिए साधन विषयों काे अलग करना होगा। संसार में कुछ करो या मत करो किंतु मन को परमात्मा में लगा लो। राम धुन में जब मन मगन होगा तो स्वतः ही सारे कलह, कष्ट समाप्त हो जाएंगे। घर को ही परमात्मा का घर मानकर मन को हरि स्मरण में लगा लो।

स्वामीजी ने प्रसंग से बताया कि जीवन में संबद्ध मिथ्या है। संबद्धोंं का यह निजी स्वार्थ ही पूर्णतः मिथ्या है। इसी स्वार्थ के वशीभूत होकर हम अपने ही कल्याण का मार्ग अवरूद्ध कर रहे हैं। परम धर्म को समझाते हुए कहा कि हमारी भक्ति समर्पण वाली हो। जिसमें मैं-मेरा व अपना-पराया का भाव नहीं हो। सिकंदर के प्रसंग पर बताया कि मृत्यु के बाद एक सुई भी हम नहीं ले जा सकते। कथा में शुकदेव मुनि (वेणूगोपाल संस्कृत पाठशाला का छात्र किशन) व राजा परीक्षित (पंकज मूंदड़ा) की मनमोहक झांकी बनाई।

कथा के प्रारंभ मेंं नागोरिया पीठाधीश्वर स्वामी विष्णुप्रपन्नाचार्य महाराज के मंगलानुशासन में गिरधर बियाणी, शैलेष होलानी, शकुंतला सिंगी, जगदीश राठी, नटवर बियाणी, मनोज होलानी, डॉ. बीपी मालवीय, डॉ. राजेंद्र जोशी ने व्यासपीठ का पूजन किया। समिति के ओमप्रकाश होलानी, गौरव बाल्दी, रूपेश तापड़िया, रवींद्र धूत, प्रमोद गट्टानी ने बताया कि स्वामीजी के सानिध्य में श्रद्धालुओं ने प्रातः साढ़े 6 बजे हरिनाम संकीर्तन यात्रा नर्मदातट तक की।

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