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छत्रपति संभाजी महाराज महान मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र थे। उनका जन्म 14 मई, 1657 को महाराष्ट्र के पुणे में स्थित पुरंदर के किले में हुआ था और वे भोंसले वंश के थे। संभाजी महाराज ने अपने बचपन के दिनों से ही अपने पिता की तरह अपना जीवन देश और हिंदुत्व के लिए समर्पित कर दिया था।
संभाजी महाराज ने अपनी मां सई भोंसले को तब खो दिया था जब वह केवल दो साल के थे। जिसके बाद, उनका पालन-पोषण उनकी दादी जीजाबाई ने किया। उन्होंने बहुत कम उम्र से ही राजनीति में रुचि ले ली थी। वे आगे चलकर पूरे देश के लिए प्रेरणा बने।
संभाजी महाराज बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथ युद्ध भूमि में रहकर युद्ध के कला कौशल और कूटनीति में दक्ष हो गए थे। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब से 120 युद्ध लड़े और सभी में औरंगजेब को हार का सामना करना पड़ा था। उस समय मराठों का सबसे शक्तिशाली दुश्मन मुगल सम्राट औरंगजेब ने भारत से बीजापुर और गोलकुंडा के शासन को समाप्त करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
साल 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात उनकी तीसरी पत्नी सोयराबाई के बेटे राजाराम को सिंहासन पर बैठाया गया। उस समय संभाजी पन्हाला में कैद थे। वहीं, संभाजी को जब राजाराम के राज्याभिषेक की खबर मिली तो उन्होंने उन्होंने पन्हाला किले के किलेदार की हत्या कर किले पर कब्जा कर लिया। इसके बाद संभाजी ने 18 जून 1680 को रायगढ़ किले पर भी कब्जा कर लिया और राजाराम, उनकी पत्नी जानकी और मां सोयराबाई को गिरफ्तार कर लिया।
वहीं, 16 जनवरी 1681 में महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में संभाजी राजे का विधिवत भव्य राज्याभिषेक हुआ। इस खबर से औरंगजेब और परेशान हो गया था। शिवाजी की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब को लगा था कि वह अब आसानी से रायगढ़ किले पर कब्जा कर लेगा। संभाजी राजे के पराक्रम की वजह से परेशान होकर औरंगज़ेब ने कसम खाई थी की जब तक छत्रपती संभाजी राजे पकड़े नहीं जाएंगे, वो अपना किमोंश (पगड़ी) सर पर नहीं चढ़ाएगा।
उधर, राजाराम को सिंहासन नहीं मिलने से उनके समर्थक असंतुष्ट थे। जिसके बाद उन्होंने एक पत्र के जरिए औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद अकबर से रायगढ़ पर हमला कर साम्राज्य का हिस्सा बनाने की गुजारिश की। मोहम्मद अकबर संभाजी की शूरवीरता से परिचित था। जिसके चलते उसने वह पत्र संभाजी को भेज दिया। इस राजद्रोह से क्रोधित होकर छत्रपति संभाजी ने अपने सभी गद्दार सामंतों को मृत्युदंड दिया। इस बात का फायदा उठाकर अकबर ने दक्षिण भागकर संभाजी का आश्रय ग्रहण किया और संभाजी के खिलाफ पूरी ताकत लगा दी।
संभाजी ने 1683 में पुर्तगालियों को पराजित किया था। इस पश्चात वह किसी राजकीय कार्य से संगमेश्वर में रह रहे थे। लेकिन जब वह जिस दिन रायगढ़ जाने के लिए निकलने वाले थे, उसी दिन कुछ ग्रामीणों ने उन्हें अपनी समस्या बताई। उन्होंने ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुए अपने साथ सिर्फ 200 सैनिक रखे और बाकी सैनकों को रायगढ़ जाने का आदेश दिया। इसी बात का फायदा उठाकर और संभाजी से गद्दारी कर उनके साले गरुढ़ जी शिरके ने मुगल सरदार मुकरन खान के साथ गुप्त रास्ते से पांच हजार फौज के साथ संभाजी पर हमला कर दिया।
बता दें कि यह वह रास्ता था जो सिर्फ मराठों को पता था। संभाजी राजे और उनकी 200 सैनिकों ने मुग़ल सेना से लड़ने का प्रयास किया लेकिन वह इसमें असमर्थ रहे। जिसके बाद संभाजी अपने खास मित्र कवि कलश के साथ बंदी बना लिए गए। वहीं संभाजी से परेशान और गुस्साए औरंगजेब क्रूरता एवं अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं। औरंगजेब ने 11 मार्च 1689 को दोनों की जुबान कटवा दी, आंखे निकलवा ली और उनकी हत्या कर दी।
इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब ने संभाजी महाराज को इस्लाम अपनाने को कहा था। गंभीर यातनाओं के अधीन होने के बाद भी, संभाजी ने अपना पक्ष रखा और धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया। उनके सर्वोच्च बलिदान और युद्ध जीतने की रणनीति ने उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए महानता का प्रतीक बना दिया।
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