माया के बंधन से मुक्त होकर परमात्मा की भक्ति करें- भागवत भूषण पं. शास्त्री

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देवास। जितना माया के फेर में पड़ोगे, उतना ही कष्ट भोगना पड़ेगा। माया के बंधन से मुक्त होकर परमात्मा की भक्ति करना ही सच्चा मार्ग है। सोने-चांदी के आभूषण, संपत्ति, गाड़ी, बंगला—इनमें से कुछ भी हमारे साथ नहीं जाएगा। अंत समय में, समाज और परिवार यही कहते हैं कि सब कुछ छोड़कर जाना है। जब संसार से विदा वैसा ही लेना है, जैसा यहां आए थे, तो माया के बंधन में क्यों उलझना?

इन विचारों को भागवत भूषण पं. आशुतोष शास्त्री ने मेंढकीचक शिव मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दौरान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि माया हमें दिखाई नहीं देती, लेकिन हमें संसार के मोह-जाल में फंसा देती है। मकान, गाड़ी, परिवार और रिश्तेदारों के मोह में उलझे व्यक्ति को अंततः अपने कष्ट खुद ही भोगने पड़ते हैं।

पं. शास्त्री ने कहा कि भगवान ने हमें यह मानव जीवन हमारे अच्छे कर्मों के कारण दिया है। इसे व्यर्थ गंवाने के बजाय, आत्मा के कल्याण के लिए उपयोग करें। मनुष्य का मन चंचल है और इसे सन्मार्ग पर ले जाने के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा, “मन बड़ा मतवाला है, यह हमें भटकाता है। इसलिए, आत्मा के कल्याण के लिए इस मन पर अंकुश लगाना जरूरी है।”

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शास्त्रों के अनुसार, सन्मार्ग पर चलकर ही भगवान की प्राप्ति संभव है। उन्होंने कहा कि भगवान की छत्रछाया में हमारा पालन-पोषण हो रहा है। कथा हमें यह सीख देती है कि पाप से बचें और पुण्य संग्रह करें।

इस अवसर पर पंडित आशुतोष शास्त्री ने सुमधुर भक्ति गीत, जैसे “ना सोना काम आएगा, ना चांदी काम आएगी” और “तारा है सारा जमाना, श्याम हमको भी तारो” की प्रस्तुति दी। श्रद्धालु भक्ति गीतों पर झूम उठे।

कार्यक्रम के दौरान पं. आशुतोष शास्त्री का महाकाल दुपट्टा, शॉल, और श्रीफल से सम्मान किया गया। महिला मंडल एवं अतिथियों ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती संपन्न की। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण कर धर्म लाभ लिया।

 

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