देवास। हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सब स्वर के ही बाग में खड़े हैं। जहां-जहां दया की, इनका नाम हो गया, उनके धर्म का नाम हो गया। जहां दया है वहां धर्म है। पं. धीरेंद्र शास्त्री बागेश्वर धाम से ओरछा तक सनातन हिंदू एकता पदयात्रा निकालकर सबको याद दिला रहे हैं कि स्वर ही सबका बाग है। यह सत्य, दया, प्रेम और विश्वास की यात्रा है। सबमें समानता और विश्वास कायम कर रहे हैं। जाग्रत कर रहे हैं। इसमें कभी-कभी उछाल आता है। जब कोई निर्दय लोग इस स्वर का दुरुपयोग करते हैं। बागेश्वर जो कहा गया है, वह स्वर का ही बाग है। जितने भी संसार में शरीर सब स्वर के ही बाग हैं। जिस-जिस ने दया दिखाई, वहां धर्म कायम हो जाता है। हम सब स्वर के ही उपासक है।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु-शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि जो नासमझ है वे लोग ऊंच-नीच, भेदभाव में बंटे हुए हैं। जबकि जिस तरह से आंख, ऊंगली, कान, नाक यह सब शरीर के ही अंग है। दया के ही अंग है। इसी तरह हम सब मानव एक ही हैं।
आगे कहा कि जिसका तन सना हुआ है, चैतन्य है, वह सनातन है। पतन को छोड़कर सनातन की ओर, लौटो। दया धर्म का मूल है। स्वर जागा हुआ है इसलिए सारा संसार स्वर का ही बाग है, जागते रहो। लेकिन इसमें सोने वाला पैदा हो गया है। धर्म से फिर इसको जगाते हैं श्वास के द्वारा। श्वांस तुम्हारी जाग रही है, तुम क्यों सो रहे हो। सोने वाले का धन चोर चोरी कर ले जाते हैं। शांति भंग कर देते, उनकी रोटी तक छीन लेते हैं। इसलिए जागना चाहिए। जागने में दया धर्म और विश्वास का बल मिल जाता है। सदा अजय हो जाते हैं। सब बागेश्वर का साथ दो दया, प्रेम और विश्वास की यात्रा है बागेश्वर। स्वर के ऊपर सारे शरीर बने हैं। दया प्रेम और विश्वास से चल रहे हैं। दया प्रेम और विश्वास इसकी सुरक्षा का दायित्व कायम कर रहा है। हमें साथ देना चाहिए दया की छांव में हम सबको बैठना है। दया ही धर्म है। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।
Leave a Reply