बागड़ के रूप में लगाए सीताफल आय का जरिया बने

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सीताफल

सीताफल से आर्थिक रूप से मजबूत बन रहे किसान

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। इन दिनों सीताफल की अच्छी आवक हो रही है। सीताफल की खेती करने वाले किसानों को इसके भाव भी अच्छे मिल रहे हैं। क्षेत्र के जंगलों में भी सीताफल के पेड़ बड़ी संख्या में है। आदिवासी परिवार जंगलों से भी सीताफल तोड़कर मंडी में बेचने के लिए ला रहे हैं। सामान्य रूप से सीताफल 60-70 रुपए किलो बिक रहा है। कई खेतों में फसल की सुरक्षा के लिए बागड़ के रूप में भी सीताफल के पौधे लगाए गए हैं।

सीताफल आदिवासी परिवारों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही जीविका का साधन बना हुआ है। सीताफल के भाव में लगातार वृद्धि होने से किसान उत्साहित हैं। इसकी पैदावारी में आश्रित किसान परिवारों की आय में बढ़ोतरी हुई है। बेहरी क्षेत्र के बेहरी, रामपुरा, चवरा, गुवाड़ी, पंजरिया खेड़ा, सिवन्या में बंपर उत्पादन हो रहा है। यहां का सीताफल बाजार में आ गया है।

सीताफल उत्पादक किसानों का कहना है कि यह फल 20 दिन का रहता है। अधिक पकाने के बाद फफुंद लग जाती है और यह सड़ने लगता है। स्थानीय मार्केट में नहीं बिकने पर परेशानी आती है। किसानों ने बताया कि इसका गूदा निकालकर फ्रिजर में रखने पर यह लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

Sitafal

इन दिनों कच्चा सीताफल 30 से 40 रुपए किलो तक में बिक रहा है। पकने पर इसके भाव 70 रुपए किलो तक मिल रहे हैं। इसका सीजन दीपावली तक चलेगा। हालांकि देवउठनी ग्यारस तक भी सीताफल का उत्पादन होगा, लेकिन आवक कम हो जाएगी। वैसे कम समय में भी किसानों को अच्छी आय हो जाएगी।

लगभग 8 वर्ष पूर्व क्षेत्र की सभी ग्राम पंचायतों में हरियाली महोत्सव के तहत दो दर्जन किसानों के यहां सीताफल के पौधे आए थे, तब तत्कालिन सरपंचों ने सीताफल के पौधे उपलब्ध करवाए थे। अब ये पौधे पेड़ बनकर किसानों की आय के साधन बने हुए हैं। उस वक्त दिए गए पौधों में से 80 प्रतिशत पेड़ बन चुके हैं। किसानों ने खेत के चारों ओर बागड़ के रूप में सीताफल लगाए थे।

बाजार भाव 50 से 60 रुपए तक से बिकने पर यह फल इस बार 50 हजार रुपए तक बिक जाएंगे। विगत वर्ष इन्हीं सीताफल के वृक्षों में से 35 हजार रुपए के सीताफल किसान द्वारा बेचे गए थे। वर्तमान में सीताफल के पेड़ फलों से लदे दिखाई दे रहे हैं। सीताफल के पेड़-पौधों की पत्तियों को मवेशी भी नहीं खाते। इस कारण यह पौधा कहीं पर भी पनप जाता है।

किसान गंगाराम वास्केल, प्रताप बछानिया, रूपसिंह बागवान, चंदनसिंह राठौर, उमेनसिंह डोडावे आदि के यहां सीताफल की बहार है। किसान गंगाराम वास्केल बताया कि प्रत्येक फल को तोड़कर अलग-अलग पाल में रखकर बेचा जाता है, जिससे फल एक साथ नहीं पके। ऐसा होने से फल बेचने में आसानी होती है। सीताफल पूरी तरह बिकने पर 30 हजार से अधिक की आय होगी। अभी तक 10 हजार से अधिक के सीताफल बेच दिए हैं।
किसानों ने बताया कि इतनी आय तो 6 बीघा खेत में सोयाबीन एवं गेहूं की फसल में भी नहीं होती, जितनी आय बागड़ रूपी सीताफल से हो गई। इसमें खर्च नहीं के बराबर है।

उद्यानिकी विभाग के सबडिवीजन प्रबंधक राकेशसिंह सोलंकी ने बताया यदि क्षेत्र के किसान आवेदन करते हैं तो उनके खेतों में उद्यानिकी विभाग द्वारा सीताफल के पौधे लगाए जाएंगे। यदि क्षेत्र के किसानों प्रयास करें तो उसे ड्रिप योजना के तहत सब्सिडी दी जा सकती है। वर्तमान में सीताफल की फसल संबंधित किसान के लिए वरदान साबित हो गई है।

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