जीव की राजधानी है शरीर, जो अनेक योनियों में रमण करता हुआ राज करता है- सद्गुरु मंगलनाम साहेब

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देवास। जैसे सूर्य का उदय और अस्त होना है, वैसे ही शरीर का भी मां की योनि से उदय और फिर अस्त होना है। उदय, पालन, अंकुरित, रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण के साथ 84 लाख योनियों में शरीर रमण करता रहता है। जीव तो व्यापक वस्तु है शरीर रमण करता है। उम्र के साथ बचपन, बुढ़ापा और जवानी तीन अवस्थाओं के बाद अंत में या तो शरीर को जला दिया जाता है या फिर दफना दिया जाता है।

यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सदगुरु कबीर प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित चौका आरती के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि जीव व्यापक और चैतन्य है जो हर पहलू पर खड़ा है। जीव की राजधानी शरीर है जो अनेक योनियों में रमण करता हुआ राज करता है। इनमें चैतन्य पुरुष है वह सर्वांगी है। बचपन, जवानी, बुढ़ापा इन सारे आयामों को सहते हुए जीता रहता है। उन्होंने कहा, कि गोविंद की मायावस प्राणी 84 लाख योनियों में भटकता रहता है। हर परिस्थिति को भोग रहा है। जब तक सद्गुरु की संगति, सद्गुरु की छाया ना मिले तब तक जीव 84 लाख योनियों की दुख पीड़ाएं भोगता रहता है। मिट्टी का साथ लेकर शरीर प्रकृति की लहर में बहता रहता है। जो मानव तत्व प्रकृति, बल और माया को जीत लेता है वही साधु कहलाता है। जो इनको साध लेता है वही साधु कहलाता है। मानव तत्व प्रकृति बल ओर माया में बहता रहता है।

अपने गुरु की संगत पाकर इन पर विजय प्राप्त की जा सकती है। जैसे एकदम प्रकाश में चले जाओंगे तो कुछ समझ नहीं आएगा, लेकिन धीरे-धीरे तुम उस प्रकाश को जान लोंगे। वैसा ही सद्गुरु का ज्ञान रूपी प्रकाश होता। सद्गुरु की संगति से ही मानव विवेकशील बनता है। जब तक हम सद्गुरु की संगति में नहीं आएंगे, तब तक अनेक बंधनों में बंधा शरीर दुःख और पीड़ाओं को भोगता रहेगा। सद्गुरु की संगति के बिना शरीर का बंधन छूटने वाला नहीं है। सद्गुरु की संगति से हर बंधन से मुक्त हो जाता है मानव। कार्यक्रम के पश्चात चौका आरती में शामिल साध-संगत को महाप्रसादी का वितरण किया गया। यह जानकारी सेवक राजेंद्र चौहान ने दी।

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