बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। पूरे क्षेत्र में शीतला सप्तमी पर 1 अप्रैल को पूजन होगा। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलेगा। एक दिन पूर्व से बनाए भोजन व पकवानों का भोग माता को लगाया जाएगा। रविवार को महिलाएं पकवान बनाने में लगी रहीं।
होलिका दहन के 7 दिन बाद शीतला सप्तमी पर्व मनाया जाता है। एक दिन पूर्व छठ तिथि पर माता का भोग प्रसाद भोजन परिवार की महिलाओं द्वारा बनाया जा रहा है। सोमवार सुबह शीतला माता मंदिर पर सूर्योदय के पहले महिलाएं उक्त बने हुए भोजन और प्रसाद का भोग माता को अर्पित करेंगी।
माना जाता है कि शीतला सप्तमी शीतलता की देवी है। अग्नि और गर्म चीजों से उन्हें क्रोध आता है। इसलिए सभी परिवारों में एक दिन पूर्व ही शीतला सप्तमी के लिए भोग प्रसादी बनाई जा रही है। शीतला माता मंदिर पर पूजन करने के बाद सार्वजनिक होली का दहन स्थल पर भी होली को भी ठंडा किया जाएगा। यह प्राचीन मान्यता है।
गांव की बुजुर्ग महिलाएं बताती है कि शीतला माता को शीतल चीज और ठंडा जल अति प्रिय है। वहीं दूसरी और सात दिवस के बाद होली का स्थल पर भी परिक्रमा करते हुए पानी की ठंडी धार छोड़ी जाती है। इस दिन महिलाएं सुबह जल्द उठकर स्नान करते हुए नंगे पैर माता के दरबार पहुंचती हैं और नतमस्तक होकर क्षमा याचना करते हुए पूजा करती है। आशीर्वाद लेती है कि वर्षभर घर में शांति बनी रहे।
गुड़ के बनाए जाते हैं व्यंजन-
इस दौरान घर पर एक दिन पूर्व गुड़ से बने गुलगुले और अन्य प्रकार की आकृति वाले आटे से बने व्यंजन बनाए जाते हैं। साथ में गेहूं तथा चने को गलाकर उसका भोग भी लगाया जाता है। घर से शीतल और स्वच्छ जल ले जाकर माता को शीतल किया जाता है। ऐसा करने से घर में बच्चों को कोई बीमारी नहीं होती है।
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