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नागपुर. फरलो पर अवकाश के बाद देरी से लौटने के कारण सजा माफी के रजिस्टर में नाम काटा गया. डीआईजी (जेल) द्वारा लिए गए इस फैसले को चुनौती देते हुए हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा भुगत रहे कैदी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश विनय जोशी और न्यायाधीश वाल्मिकी मेझेनेस ने न केवल डीआईजी का आदेश खारिज कर दिया बल्कि जिला सत्र न्यायालय द्वारा दिया गया फैसला भी रद्द कर दिया. कैदी की ओर से अधि. इशांत तंबी ने पैरवी की. अदालत को बताया गया कि कैदी को फरलो पर 14 दिन की छुट्टी प्रदान की गई थी.
87 दिन देरी से आत्मसमर्पण
अधि. तंबी ने कहा कि याचिकाकर्ता अवकाश पर जाने के बाद टायफाइड बीमारी से पीड़ित हो गया जिसकी वजह से वह 87 दिनों बाद जेल में आत्मसमर्पण कर सका. देरी से आने के लिए सजा के तौर पर 435 दिनों के लिए क्षमा रजिस्टर में उसका नाम काट दिया गया. डीआईजी की ओर से एक अध्यादेश का हवाला देते हुए एक दिन को 5 दिन के रूप में आंका गया जिसके अनुसार 87 दिनों के लिए 435 दिनों को अंकित किया गया.
न्यायिक मुहर के लिए डीआईजी ने इस आदेश को जिला सत्र न्यायालय के विचाराधीन भेज दिया. जहां सत्र न्यायालय ने गजानन एकनाथ मुरले प्रकरण का हवाला देते हुए मुहर भी लगा दी. सुनवाई के बाद अदालत ने आदेश में कहा कि भले ही सत्र न्यायाधीश ने मुरले प्रकरण के आधार पर मुहर लगाने के आदेश दिए हो लेकिन यह मामला वैसा प्रतीत नहीं हो रहा है. अत: अदालत ने उक्त आदेश जारी किया.
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