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गड़चिरोली. हिंदू संस्कृति के अनुसार चैत्र से लेकर फाल्गुन माह तक समूचे 12 महीने विभिन्न त्यौहार, उत्सव मनाए जाते हैं. जिसके तहत हिंदू पंचांग के तहत अंतिम फाल्गुन माह का लगभग अंतिम पर्व होली का माना जाता है. जिससे होली के पर्व पर उत्साह व उमंग का वातावरण हमेशा से रहा है. रविवार को शहर के बाजार में होली उत्सव की खरीदारी के लिए ग्राहकों की भीड़ रही. रविवार को शहर और बाजार पर होली पर्व का रंग चढ़ा.
गड़चिरोली शहर समेत जिलेभर के बाजार विविध रंग, विभिन्न मुखौटे, पिचकारियों की दूकानों से सज गए हैं. जिसके चलते बाजारों में नागरिकों को चहल-पहल बढ़ रही है. जिले में होली का त्यौहार 2 दिन का होता है. पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन धुलेंडी, रंगोत्सव. सोमवार को जिले के विविध स्थानों पर होलिका दहन किया जाएगा. होलिका दहन के मद्देनजर बच्चे, युवाओं में खासा उत्साह नजर आ रहा है. जिसके चलते विभिन्न स्थानों पर होलिका दहन का नियोजन किया गया है.
लकड़ियों की जुगाड़ करते हुए होलिका तैयार करने में बच्चे, युवा जुटे नजर आए. गड़चिरोली शहर के चौराहों पर होलिका दहन की तैयारियां की गई हैं. जिलेभर में होली पर्व के उत्साह का रंग चढ़ गया है. होली व धुलेंडी-रंगोत्सव त्यौहार के मद्देनजर कोई अनुचित घटना न हो, इसके लिए पुलिस द्वारा कड़ा बंदोबस्त रखा है.
होलिका को अर्पित होगा मीठी रोटी का नैवैद्य
होली का त्यौहार आते ही तैयारियों में लोग जुट जाते हैं. शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण अंचल में भी होली का पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दौरान होलिका माता को अर्पित करने हेतु विभिन्न भोग, पकवान बनाए जाते हैं. जिसमें महाराष्ट्र का प्रसिद्ध पकवान मीठी रोठी (पुरणपोली) का विशेष महत्व होता है. होलिका के पूजन के पश्चात पुरणपोली का नवैद्य अर्पित किया जाता है. वहीं अनेक स्थानों पर ग्रामदेवता की भी पूजा की जाती है.
उपलों की माला करते हैं अर्पित
देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न परंपराओं के तहत होली का पर्व मनाया जाता है. जिसके तहत जिले में भी कुछ विशेष परंपराओं के तहत होली का पर्व मनाया जाता है. जिले में होलिका दहन के दूसरे दिन यानी धुलेंडी के दिन गोबर के उपलों से बनी मालाएं चढ़ाने का विशेष महत्व है. जिसके चलते अनेक लोग होलिका पर्व के कुछ दिन पूर्व ही गोबर के उपलों की मालाएं तैयार करते हैं. वहीं ग्रामीण अंचल में होली में जले गोबर के उपलों को भस्म स्वरूप में उपयोग करते हुए अनेक लोगों द्वारा इस भस्म का तिलक किया जाता है.
दुर्गम क्षेत्रों में आदिवासी परंपरागत नृत्य
जिले के शहरी के साथ ही ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्रों में भी अपने परंपराओं के अनुरूप होली का उत्सव मनाया जाता है. जिसके चलते दुर्गम क्षेत्रों में आदिवासी संस्कृति के तहत होलिका दहन, पूजन व धुलेंडी (रंगोत्सव) होती है. आदिवासी बहुल क्षेत्र में रंगपंचमी को फागवा कहा जाता है. आदिवासी समुदाय द्वारा विभिन्न पर्व पर परंपरागत नृत्य करने की परंपरा है. जिसके तहत फागवे के दिन भी आदिवासी समुदाय द्वारा विशेष रेला नृत्य करते हैं. नाच-गाने के साथ होली का पर्व मनाया जाएगा.
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