श्वास में बह रही सूखी नदी अमी तत्व को समझ लेता है उसकी चाह, चिंता समाप्त हो जाती है- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

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देवास। सूखी नदी अमी बहाई। श्वास जो है सूखी नदी की तरह बह रही है। इसमें पानी नहीं दिखता है, लेकिन पांचों तत्व धरती, आकाश, पवन, पानी सब श्वास में बह रहे हैं। कोटि तीर्थ आदमी के पास स्वयं है लेकिन उसकी परिभाषा अमी तत्त्व नदी श्वास में है। जो श्वास मेरे पास है, वह सारे संसार के पास है। श्वास के खंभे से सारे जीव चराचर जुड़े हैं। अपनी श्वास का यदि संयम से जानकार प्रयोग करें तो सारे संसार में अपनी चेतना को, अपनी इंद्रियों को बस में करके जागृत होकर के सत्य पुरुष के पास पहुंच जाते हैं। अमी तत्व के पास पहुंच जाते हैं, लेकिन इंसान इन भाषाओं को समझ ही नहीं रहा है। जिससे सारे संसार की समस्याएं हल हो जाती है। उस अमी तत्व की श्वास को कोई ग्रहण ही नहीं करता।

यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि धैर्य, दया, क्षमा इनको जान ले, समझ ले तो सारा झगड़ा, सारी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। श्वास की भी क्रियाएं हैं। श्वास की क्रियाओं से शरीर के सारे रोगों का नाश होकर मानव दीर्घायु हो जाता है। संत लोगों की भाषा इसी नदी में नहाने की है। श्वास का अनुभव कर आदमी जागृति में आ जाता है। क्योंकि श्वास जगाने वाली है। बाकी सब तत्व  सोए पड़े हैं लेकिन श्वास इनको जगा रही है। सूखी नदी में अमृत बह रहा है। जहां मानव का जीवन संचालन हो रहा है। स्वयं को श्वास की सूखी नदी का अनुभव करके जीवन को बदलना है। अमृत रूपी अमी तत्व की गतिविधियों को समझ लोंगे तो जीवन की सारी चाह, चिंता समाप्त हो जाएगी। इस दौरान सद्गुरु मंगलनाम साहेब का साध संगत द्वारा शाल, श्रीफल भेंट कर पुष्पमालाओं से स्वागत किया। यह जानकारी सेवाक वीरेंद्र चौहान ने दी।

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