यज्ञ की परिक्रमा ब्रह्मांड की परिक्रमा के बराबर होती है- कृष्ण गोपालदास महाराज
देवास। मालीपुर स्थित ज्योतिबा फुले चौराहा पर दो मई से साकेतवासी गरुड़दासजी महाराज ध्यान साधना सेवा न्यास की प्रेरणा से महंत पंचमुखी धाम आगरोद के महंत कृष्ण गोपाल दासजी महाराज सहित काशी एवं अन्य स्थानों से पधारे संत महात्माओं के सानिध्य में चल रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में यजमानों द्वारा डाली जा रही आहुतियाें से वातावरण धर्ममय हो गया है। सैकड़ों भक्त यज्ञ मंडप की परिक्रमा कर धर्म लाभ ले रहे हैं।
पंचमुखी धाम आगरोद के महंत कृष्ण गोपाल दासजी महाराज ने यज्ञ के दौरान अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, कि संसार में ईश्वर आराधना की प्रथम विधि होती है तो वह यज्ञ है। हिंदू संस्कृति वैदिक संस्कृति है। वैदिक संस्कृति का आधार यज्ञ है। अग्नि को देवताओं का मुख कहा गया है। यज्ञ की प्रज्ज्वलित अग्नि में स्वाहा-स्वाहा का उच्चारण कर डाला गया घृत और शाकल्य सीधे देवताओं को प्राप्त होता है। यज्ञ क्रिया से आहार प्राप्त कर प्रसन्न देवता हमें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। यज्ञ के औषधि युक्त धूम्र से वातावरण का शुद्धिकरण हो जाता है। यज्ञ में पढ़े जाने वाले मंत्रों से वातावरण में नकारात्मकता नष्ट होकर सकारात्मक वातावरण घर में प्रवेश कर समाज में नव निर्माण होता है।
उन्होंने आगे कहा कि यज्ञ मंडप की परिक्रमा का भी बड़ा ही धार्मिक महत्व है, क्योंकि यज्ञ मंडप में 33 कोटि देवताओं का सीधा आह्वान होता है। इसलिए यज्ञ मंडप की परिक्रमा संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा है। इससे अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। संत, महात्माओं द्वारा यजमानों के साथ महाआरती की गई। यज्ञ आयोजन समिति के वासुदेव परमार ने बताया कि श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में 29 जोड़े यजमान के रूप में प्रतिदिन आहुतियां प्रदान कर रहे हैं। अब तक लगभग एक लाख आहुतियां यजमानों द्वारा प्रदान की जा चुकी है। यह जानकारी समिति पदाधिकारी राहुल हरोड़े ने दी।
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