भगवान की भक्ति में श्रद्धा के साथ विश्वास जरूरी- आचार्य अनिल शर्मा

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देवास। जिसमें कोई तर्क नहीं वही श्रद्धा है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है श्रद्धा के साथ विश्वास हो। केवल श्रद्धा होगी तो ज्यादा दिन टिकने वाले नहीं है। कुछ भक्त ऐसे हैं, जो पहले बजरंगबली के दर्शन करते थे और बजरंगबली को कहते थे हमारे इष्ट देवता है, लेकिन कुछ दिन बाद हनुमानजी को भी बदल कर और कोई देवता को भजने लग जाते हैं, लेकिन कभी इष्ट देवता को नहीं बदलना चाहिए।

यह विचार बजरंगबली नगर विकास समिति द्वारा हनुमंतेश्वर महादेव मंदिर परिसर में सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के शुभारंभ अवसर पर व्यासपीठ से कथावाचक आचार्य अनिल शर्मा आसेर वाले द्वारा व्यक्त किए गए। उन्होंने कहा बदलने वाले दो प्रकार के भक्त होते हैं। एक मानने वाला और एक जानने वाला। जो मानने वाला है वह कभी इनको मानेगा कभी उनको मानेगा। मानने वाला देवता बदलता रहता है, लेकिन जो जानने वाला भक्त है, जिसमें समझ है वह कभी अपने इष्ट देवता को नहीं बदलता।

उन्होंने कहा गोस्वामी तुलसीदासजी से किसी ने कहा आप तो रघुनाथजी के भक्त हो। इस पर तुलसीदासजी ने कहा हां! भक्त तो मैं प्रभु श्रीराम का ही हूं, लेकिन मस्तक नहीं झुकने दूंगा। मस्तक अगर कहीं झुकेगा तो वह प्रभु श्रीराम के सामने झुकेगा और जब भगत का विश्वास दृढ़ हो जाए तो फिर भगवान की कृपा भी कभी कम नहीं होती। तुलसीदासजी की भावना थी चाहे कितना भी संकट आ जाए लेकिन हमारा इष्ट नहीं बदलना चाहिए। कोई अपने माता-पिता बदलता है क्या। जैसे माता-पिता नहीं बदले जाते, वैसे ही इष्ट देवता नहीं बदले जाते। गुरु भी कभी नहीं बदलते हैं। एक ही गुरु होते हैं, जिनको गुरु बना लिया, जिससे मंत्र ले लिया, जिसके सामने समर्पण कर दिया फिर चाहे वह कहीं पर भी हो, किसी भी हाल में हो गुरु तो गुरु ही होता है।
कथा के पूर्व सुबह 9 बजे कॉलोनी के प्रमुख मार्गों से बैंड-बाजों के साथ शोभायात्रा निकाली गई। कथा प्रतिदिन दोपहर 1 से 5 बजे तक होगी। यह जानकारी हनुमंतेश्वर बजरंगबली नगर विकास समिति ने दी।

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