– आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के कहने पर लगाए थे सूरजना के पौधे
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। घर के आसपास खाली जमीन पर लगाए गए सूरजना के लगभग 16 हजार पौधे अब पेड़ बनकर ग्रामीणों एवं किसान परिवारों की अतिरिक्त आय का माध्यम बन गए हैं। ये पेड़ फलियों से लदे हुए हैं। ये फलियां मंडी में मुनासिब दाम पर बिक रही है। इन पेड़ों से हरियाली भी छाई है और आय भी बढ़ी है।
उल्लेखनीय है, कि 6 वर्ष पूर्व तत्कालीन कलेक्टर आशुतोष अवस्थी और महिला बाल विकास विभाग की कार्यक्रम अधिकारी सुनीता यादव के नेतृत्व में देवास जिले में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से हाइब्रिड सूरजना पौधे वितरित किए गए थे। यह कार्यक्रम पूरे जिले में बड़े पैमाने पर चलाया गया।
बेहरी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शर्मिला तंवर एवं संगीता गोस्वामी ने भी क्षेत्र में 50 से अधिक सूरजना पौधे आसपास की महिलाओं को लगाने के लिए दिए। धीरे-धीरे यह पौधे पेड़ बने और वर्तमान में फूल एवं फली से लदे हुए हैं। ये अतिरिक्त आय का साधन भी बन गए। वर्तमान बाजार में सूरजना फली 80 रुपए किलो से लेकर 100 रुपए किलो तक बिक रही है। बेहरी क्षेत्र की महिलाएं बताती है, कि इस पौधे से निकली फली को बेचकर अतिरिक्त आय भी हो रही है। संगीता गोस्वामी ने अधिकतर सूरजना पौधे बागवान समाज की महिलाओं को दिए थे, हालांकि आय का स्रोत देखते हुए किसानों ने अन्य नर्सरी से भी पौधे लाकर लगाए हैं।
वर्तमान में बेहरी ग्राम पंचायत की स्थिति के विषय में गौर करें तो लगभग सभी किसान के यहां खेतों पर सूरजना पौधे लगे हुए हैं। ग्रामीण बताते हैं, कि कोई भी किसान परिवार बाजार से यह फली नहीं खरीदता है चाहे सस्ती हो या महंगी। उनके खेतों और बगीचों में इसकी पर्याप्त मात्रा में फली लगी हुई है। यहां के बागवान परिवार जरूर बागली, हाटपिपलिया एवं अन्य मंडी में जाकर सूरजना फली को बेचते हैं। तात्कालीन परियोजना अधिकारी जयदेश जोसफ ने बताया, कि उस वक्त पूरे बागली क्षेत्र में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से 16000 पौधे तैयार करके वितरित किए गए थे। जिसमें से 20 प्रतिशत पौधे फली देने लगे हैं। बेहरी निवासी सुगन बाई, भगवंता बाई, धापू बाई बागवान ने बताया, कि उनके यहां अन्य पौधे भी सूरजना के लगे हुए हैं, लेकिन लेकिन आंगनवाड़ी से दिया पौधा हाइब्रिड होने की वजह से अत्यधिक उत्पादन देता है। इसमें फली भी लंबी लगती है और उत्पादन मात्रा भी अन्य पौधे से अधिक है। यह हमारे लिए आय का साधन बन गया है। विगत वर्ष 3000 रुपए की फली पेड़ों से तोड़कर बेची गई। ऐसी क्षेत्र से जुड़ी कई महिलाओं की कहानी है, जिन्होंने सहजन पौधे को आय का साधन बना लिया है।
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