देवास। मृत्यु कभी होती ही नहीं है सिर्फ भास होता है। जीव तो अजर-अमर है, जो कभी नहीं मरता। मरता सिर्फ चमड़ा है। जीव जीना ही जानता है, मरना जानता ही नहीं। जीव तो जुग-जुग जीने वाली व्यापक वस्तु है।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु शिष्य संवाद में प्रकट किए। उन्होंने कहा शरीर से जीव नहीं निकलता है। जैसे एक मटके में पानी भरकर तुम रख दो, मटका फोड़ोगे तो क्या पानी मरेगा। नहीं, सिर्फ आपको भास होता है। मटके को पानी से भर दिया, जबकि पानी में ही मटका है। जीव व्यापक वस्तु है, कि जैसे आपने गाड़ी के ट्यूब में वॉल लगा दिया, लेकिन हवा बाहर भी है और अंदर भी। यह हमारी समझ पर निर्भर करता है।
उन्होंने कहा जैसे अंधे को कलर नहीं समझाया जा सकता, वैसे ही नासमझ को जिसमें समझ ही नहीं है उसे यह नहीं समझाया जा सकता। जैसे अंधे को कहोंगे कि कलर कैसा होता है तो कहेगा कि चूने जैसा होता है तो चूना कैसा होता है, तो बोलेगा कि दूध जैसा होता है, दूध कैसा होता है तो बगुले जैसा होता है, जबकि बगुला टेढ़ा-मेढ़ा होता है। इसलिए जो नासमझ है उसे नहीं समझाया जा सकता। क्योंकि उसमें समझ नहीं है। उन्होंने कहा संसार में सब नासमझी के कारण ही भटक रहे हैं। सद्गुरु से संवाद करने पर ही समझ आ सकती है। सद्गुरु से संवाद करने पर संसार के सारे भ्रम जाल टूट जाते हैं। इस अवसर पर सद्गुरु कबीर के अनुयायी साध, संगत आदि उपस्थित थे।
मृत्यु कभी होती ही नहीं सिर्फ भास होता, जीव मरना जानता ही नहीं- सद्गुरु मंगल नाम साहेब
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