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    गुठली से हरियाली की क्रांति: शांतिलाल पाटीदार ने प्रकृति से प्रेम का प्रस्तुत किया अद्भुत उदाहरण

    ByNews Desk

    Jun 4, 2025
    Plantation
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    – 10 वर्षों में 1000 से अधिक पौधे बने हरे-भरे वृक्ष, जहां झाड़ियां थीं वहां आज है फलदार वन

    – मंदिरों, पहाड़ों और नालों के किनारों तक फैलाई हरियाली, निस्वार्थ कर रहे हैं सेवा

    बेहरी। जहां आम लोग छांव खोजते हैं, वहीं शांतिलाल पाटीदार जैसे लोग छांव देने वाले वृक्ष खड़े कर देते हैं। आने वाले समय में जब धरती पर हरियाली कम होगी और तापमान बढ़ेगा, तब शायद प्रकृति इन कर्मयोगियों का ऋण उतार न सके।

    बेहरी क्षेत्र के धावड़िया गादी परिसर की ढाई बीघा बंजर जमीन को हरे-भरे पेड़ों में तब्दील कर एक मिसाल पेश करने वाले पाटीदार को सही मायनों में “वृक्ष मित्र” कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

    2015 से शुरू हुई हरियाली की तपस्या-
    वर्ष 2015 में जून की चिलचिलाती गर्मी में शांतिलाल पाटीदार ने कटीली झाड़ियों और की वीरान जमीन पर प्रकृति का मंदिर खड़ा करने की ठान ली। उन्होंने केरल से आम के पौधे मंगवाकर गड्ढों में जैविक खाद भरकर व्यवस्थित तरीके से रोपण किया। समय-समय पर सफाई, तार फेंसिंग और स्वयं की देखरेख में पौधों की सेवा की।

    बूंद-बूंद पानी से सींचे पेड़, बनी फल वाटिका-
    पाटीदार ने विशेष रूप से गर्मियों में एक-एक पौधे में बूंद-बूंद पानी डालकर उन्हें जीवित रखा। आज यहां 50 से अधिक किस्मों के आम के साथ-साथ जाम, जामुन, नीम, पीपल, बरगद, सीताफल, अनार, आंवला जैसे 500 से अधिक पौधे वृक्ष बन चुके हैं। आने वाले समय में यह स्थल एक ऐसी फल वाटिका के रूप में विकसित होगा, जहां सूर्य की किरणें जमीन पर न पहुंच सकेंगी।

    गुठली चुनकर भी रच दी हरियाली की कहानी-
    फल सीजन में लोग जब गुठलियों को फेंक देते हैं, शांतिलाल पाटीदार उन्हें एकत्र करते हैं, चाहे मंदिर परिसर हो या नाले का किनारा। प्लास्टिक की थैली लेकर वे गुठलियां बीनते हैं और वर्षा ऋतु में उन्हें नालों, पहाड़ों और खाली जमीनों में गाड़ते हैं। हालांकि उन्हें इसकी केवल 2 प्रतिशत सफलता मिलती है, पर उनका समर्पण कभी कम नहीं होता।

    मंदिरों और पर्वतों तक फैली सेवा-
    बेहरी से लेकर कंगरिया और भेसुड़ा पर्वत तक, शांतिलाल पाटीदार ने जहां भी जरूरत दिखी, वहां पौधों को जीवनदान दिया। वर्ष 2019 में तो उन्होंने 15 दिन भेसुड़ा पर्वत पर रुककर आम के पौधों का रोपण किया। वे कहते हैं, जो पेड़ हमें फल और ऑक्सीजन दे रहे हैं, वे भी किसी ने लगाए थे। अब हमारी बारी है कि हम भी आने वाली पीढ़ी को कुछ लौटाएं।

    जो शासन नहीं कर सका, वह इस नागरिक ने कर दिखाया-
    सरकारें लाखों रुपए खर्च करती हैं पौधारोपण अभियानों पर, लेकिन देखरेख के अभाव में पौधे मुरझा जाते हैं। शांतिलाल पाटीदार ने न कोई योजना ली, न सरकारी मदद, सिर्फ हौसला, मेहनत और प्रकृति के लिए समर्पण है उनके पास।