मां चामुंडा और तुलजा भवानी के वैभव से ही देवास जिले का गौरव है। देवास शहर के जन्म के पहले से टेकरी लोगों के हृदय में रची-बसी है। इतना फर्क जरूर हुआ है कि पहले यह कुछ खास साधकों की साधना स्थली हुआ करती थी और अब हर जन की पहुंच यहां आसान हो गई है। आबादी के बढ़ने और अन्य शहरों से आने वाले लोगों के कारण टेकरी पहुंचने वालों की संख्या बढ़ गई है।
यदि टेकरी के अस्तित्व और इतिहास में जाएं तो एक समय टेकरी जंगलों के बीच हुआ करती थी। रियासतकाल में तालाबों के बीच और अब आबादी के बीच। स्थितियां बदलती चली गई, लेकिन माता जन-जन के लिए आशीष लिए अपने स्थान पर अडिग रही। इन माताओं को छोटी माता और बड़ी माता कहा गया। नारायण कुटी के स्वामी शिवोम् तीर्थजी की किताब ‘साधन शिखर’ में टेकरी के 2000 साल पहले की स्थिति के बारे में भी इशारा किया गया है। इसके साथ ही उस समय पांच महापुरुषों द्वारा तपस्या किए जाने का भी वर्णन है। उस समय यह जंगलों के बीच स्थित थी, जब इस पर खूंखार जंगली जानवर भी रहते थे। यदि इतिहास पर जाएं, तो बीज मंत्र तथा टेकरी पर शैलोत्कीर्ण देवी प्रतिमाओं की जानकारी लगभग 1000 वर्ष पुरानी है। जनसामान्य में टेकरी और माता महिमा संबंधी कई मान्यताएं और किंवदंतियां भी प्रचलित रही हैं।
इसके बाद करीब डेढ़ सौ साल पहले इस स्थान के बारे में निर्माण संबंधी ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। यहां मराठा राजाओं की परंपरा प्रारंभ हुई। कालोजी पवार अपने दो पुत्रों के साथ देवास आए। यहां के कांचमहल में रहे और फिर उनके पुत्रों ने छोटी व बड़ी पाती की आधारशिला रखी। राजकाल में श्रमदान से सीढ़ी मार्ग बनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं। रियासतकाल में ही यहां कुछ अन्य निर्माण भी हुए। चामुंडा देवी मंदिर प्रांगण में सन् 1876 में दीप स्तंभ, ओटला तथा कुंड बनवाया गया है। इतिहास में टेकरी के 12 स्थानों से पानी की निकासी होने तथा उसके लिए तालाब निर्मित करने की भी पुष्टि मिलती है। टेकरी के निचले इलाके में देवी सागर, भवानी सागर और मीठा तालाब थे। अब केवल मीठा तालाब ही है, बाकी तालाब शहरी आबादी का हिस्सा बन गए।
संतों ने चुना अपनी साधना स्थली-
पांच महापुरुषों द्वारा तपस्या व साधना करने के काल के वर्णन के बाद एक बार फिर दूसरा दौर ऐसा आया, जिसमें संतों द्वारा इस स्थान को अपनी साधना के लिए चुनने का प्रमाण मिलता है। ये सभी स्थान तो आज भी साक्ष्य के रूप में मौजूद है। स्वामी नारायण तीर्थ, शीलनाथ बाबा और उसके बाद कुमार गंधर्वजी आदि ने इस स्थान को अपनी साधना के लिए चुना। पहाड़ी और माता के श्रीचरणों में साधनारत लोगों के इन दोनों उल्लेख के बीच के काल में भी निश्चित रूप से यहां साधनारत लोगों की उपस्थिति रही होगी, किंतु उसके बारे में कोई प्रमाण नहीं हैं। आजादी के पहले प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक ‘ईएम फार्स्टर’ ने मीठा तालाब के समीप सागर महल में ठहरकर एक पुस्तक लिखी ‘द हिल ऑफ देवी।’ इसमें जो उन्होंने टेकरी के बारे में महसूस किया, वे बातें लिखी हैं।
कोई अदृश्य ऊर्जा करती है काम-
एक बात निर्विवाद है कि इस स्थान में कोई अदृश्य ऊर्जा काम करती है, जो सात्विक व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेती है। माता टेकरी में एक अद्भुत आकर्षण है, जिसमें बंधकर लोग यहां चले आते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह देवास को समृद्ध बनाती है और यहां की समशितोष्ण जलवायु और वातावरण को समृद्ध करती है। इतिहास और भूगोल के अलावा भी इसमें बहुत कुछ है। ऐसा जो लिखने में नहीं आता। जिसके न तो प्रमाण हैं और न ही वह बात मान्यता से कही जा सकती है। यह रहस्यमयता ही माता टेकरी को अलौकिक बनाती है।
आलेख- ओमप्रकाश नवगोत्री
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