सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, चीटियों और देवों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए. फिर किसी ब्राह्मण को घर पर निमंत्रित करें और उनसे भोजन करने और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें।
सर्वपितृ अमावस्या को श्राद्धपक्ष का अंतिम दिन है। जिन पितरों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती है, उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या पर ही किया जाता है। इस दिन श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, चीटियों और देवों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए, फिर किसी ब्राह्मण को घर पर निमंत्रित करें और उनसे भोजन करने और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें। अमावस्या तिथि रविवार, 25 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होगी और सोमवार 26 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर को पूरे दिन मनाई जाएगी।
गीता के सातवें अध्याय का करें पाठ-
जो व्यक्ति पितृपक्ष के 15 दिनों तक तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं कर पाते या जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना उत्तम माना जाता है। श्राद्ध के भोजन में खीर-पूड़ी का होना आवश्यक है। भोजन कराने और श्राद्ध करने का समय दोपहर होना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराने के पूर्व पंचबली दें और हवन करें। श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराएं, उनका तिलक करके दक्षिणा देकर विदा करें। बाद में घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
सर्वपितृ अमावस्या पर करें ये उपाय-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल की सेवा और पूजा करने से हमारे पितृ प्रसन्न रहते हैं। इस दिन स्टील के लोटे में दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें। इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्वप्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दें। इस दौरान ‘ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः’ मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें।
सर्वपितृ अमावस्या पर यह विधान करने से सातों पीढ़ी के समस्त पितृ शांत होते हैं और परिवार को पूर्ण रूप से आशीर्वाद प्रदान करते हैं। चौदस की रात को एक पाट पर सफेद कपड़ा बिछाकर पांच गुलाब के फूल, एक घी का दीपक प्रज्वलित करें एवं एक घड़े में जल एवं काले तिल भरकर रखें। अमावस्या को प्रातः 4 से 5 बजे के बीच उठकर स्नान करें। जो पानी आपने मटके में रात को रखा था ऊं पितृ देवताये नमो नमः का उच्चारण करते हुए। दोपहर 11:45 से 12:15 के बीच पितरों को खीर एवं पूड़ी का भोग प्रदान करें एवं कच्चे दूध में काले तिल व शक्कर डालकर पितरों का तर्पण करें। पूर्व दिशा में 16 बार ऊं पितृ देवता तप॔यामी बोलकर हथेली में एक चम्मच दूध रखें एवं अंगूठे के मध्य से दूध को दूसरे पात्र में छोड़े। ऐसा 16 बार मंत्र पढ़कर करना है। उसके बाद तीन बार हाथ में एक चम्मच जल लें और बोलें हे! पितृ देवता कृपा करके पधारिए एवं जल अंजलि ग्रहण कीजिए, ऐसा 3 बार करना है फिर दक्षिण दिशा में मुख करके इसी प्रकार 14 बार तर्पण करें उसके बाद उत्तर दिशा में मुख कर 7 बार तर्पण करें। इन दोनों दिशा में भी तीन बार जल लेकर छोड़ना है। इसके बाद पितृ सूक्त, पितृ चालीसा एवं भागवत गीता के सातवें एवं 11वें अध्याय का पाठ करें।
– श्री सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु शोध केंद्र –
एस्ट्रोलॉजर पंडित नितिन मूंदड़ा
मोबाइल नंबर- 9993356904
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