[ad_1]
केरल के कन्नूर जिले में स्थित राजराजेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लिए काफी ज्यादा फेमस है। इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। लेकिन इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के लिए अलग नियम है।
देवों के देव महादेव को विनाश का देवता कहा गया है। हिंदू धर्म में भगवान शिव का विशेष स्थान है। आपने भी भारत में उनके कई मंदिर देखे होंगे। जहां पर श्रद्धालुओं की भारी संख्या में भीड़ रहती है। हालांकि इन मंदिरों में भक्तों के मंदिर जाने का कोई विशेष नियम या रोकटोक नहीं है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि केरल में एक ऐसा मंदिर हैं, जहां पर महिलाओं के आने-जाने के अलग नियम बनाया गया है। देश में एक सौ आठ प्राचीन मंदिरों में केरल के कन्नूर जिले में स्थित राजराजेश्वर मंदिर के नाम से फेमस है। बताया जाता है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार ऋषि परशुराम ने करवाया था। यह एक मंदिर शक्तिपीठों में शुमार है। आइए जानते हैं कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के लिए यह नियम क्यों बनाया गया है।
यहां गिरा था माता सती का सिर
ऋषि परशुराम द्वारा जीर्णोद्धार कराए गए इस मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, यहां पर माता सती का सिर गिरा था। जिसके बाद यहां पर शक्ति पीठ का निर्माण हुआ था। माता सती के कारण इस जगह का अपना विशेष महत्व है।
मंदिर की महिमा
केरल के कन्नूर जिले में स्थित राजराजेश्वर मंदिर केरल शैली की वास्तुकला में बना है। इस मंदिर की छत पर एक सुंदर कलाशम स्थित है। वहीं मंदिर के चारों ओर दरवाजे बने हुए हैं। दक्षिण और पूर्व की ओर वाले दरवाजे केवल खुले हैं। पूर्व की ओर बने दरवाजे से आप ज्योतिर्लिंगम के दर्शन कर सकते हैं। आपको बता दें कि मंदिर में बाय़ीं ओर एक शुभ दीपक जलता रहता है। बताया जाता है कि इस दीपक को अगस्त्य ने जलाया था। मंदिर की फर्श पर आप ज्योतिर्लिंग के दोनों ओर घी के दीयों की एक लंबी लाइन देखने को मिलेगी।
धार्मिक अनुष्ठानों का पालन
बता दें कि इस मंदिर की तरह ही यहां के रीति-रिवाज भी काफी अनोखे हैं। यहां पर पुरुष तो किसी भी समय दर्शन के लिए आ सकती है। लेकिन महिलाओं को विशेष नियम का पालन करना पड़ता है। महिलाओं को मंदिर में 8 बजे के बाद ही प्रवेश मिलता है। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ द्वारा दिया गया वरदान आज भी उसी तरह से फलीभूत हो रहा है। इस मंदिर में लोग खोया हुआ मान-सम्मान, स्वास्थ्य, कीमती वस्तु और लंबी आयु की प्रार्थना लेकर आते हैं। इसके अलावा इस मंदिर को 11 अखंड नंदा दीपों के लिए भी जाना जाता है।
अखंड दीप से बनता है काजल
इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु दीपक में घी दान करके मन्नत मांगते हैं। भक्तों द्वारा घी का इतना ज्यादा दान किया जाता है कि इसको रखने के लिए खास जनत करना पड़ता है। बता दें कि भक्तों द्वारा दान किए गए घी को रखने के लिए मंदिर प्रबंधन को दो फ्लोर विशाल भवन बनाना पड़ा है। बता दें कि अखंड नंदा दीपक से बना काजल बुरी नजर से रक्षा करता है।
मंदिर का रहस्य
राजराजेश्वर मंदिर की वास्तुकला बेहद अनोखी है। इस मंदिर के शिखर यानि की गुंबद को इस तरीके से बनाया गया है कि इसकी परछाई जमीन पर नहीं दिखाई देती है। बता दें कि मंदिर के शिखर पर लगे पत्थर कुम्बम का भार करीब 80,000 किलो है। इस मंदिर के शिखर पर इतने भारी पत्थर को किस तरह से ले जाया गया है। यह आज भी रहस्य बना हुआ है। बताय़ा जाता है कि यहां पर 1.6 किलोमीटर लंबा एक रैंप बना था, जिसके सहारे इंच दर इंच पत्थर को खींच कर ले जाया जाता है।
[ad_2]
Leave a Reply