देवास। जब भक्त भगवान की भक्ति में सराबोर हो जाता है, तो जीवन के सारे सांसारिक अंधकार मिट जाते हैं। जमीन के अंदर से सोना मिल जाने पर हम आभूषण तैयार नहीं कर सकते। आभूषण तभी तैयार होते हैं जब हम सुनार के पास ले जाते हैं। वैसे ही मनुष्य जब भगवान की भक्ति में तपता है, तब ही भगवान की कृपा का पात्र होता है। बिना तपे तो भगवान भी कृपा नहीं बरसाते।
यह विचार राधाकृष्ण मंदिर चाणक्यपुरी में 9 मार्च से चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन मंगलवार को कथावाचक घनश्याम दास ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जो परमात्मा एक चींटी में है, वही हाथी में भी है और वही जीव चराचर में है। जब वही परमात्मा सभी शरीर में है तो फिर डरने की क्या बात है। उन्होंने कहा कि जब दांत नहीं तब दूध पियो। जब बालक के मुंह में दांत नहीं होते तब उसे दूध देते हैं भगवान। जब दांत आ जाते हैं तो मां का दूध भी सूख जाता है, क्योंकि तब वह संसार की वस्तुएं खाने के काबिल हो जाता है। फिर वही बालक के दांत ले लेता है। फिर पूर्ण रूप से बत्तीसी दे देता है। तो भगवान की लीला, महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता। वृक्ष में जितने हजार पत्तियां होती है उतने वर्षों तक तपस्या करने पर भगवान मिलते हैं। ऐसी भक्ति भक्त प्रह्लाद ने की थी कि जिससे प्रसन्न होकर भगवान स्वयं मिलने आए थे। भगवान भी भक्तों के बिना अधूरे है। कोटि-कोटि जन्मों के पुण्य का उदय होता है तब कहीं हमें श्रीमद् भागवत कथा सुनने का अवसर प्राप्त होता है। श्रीमद् भागवत कथा को सुनने के लिए देवता भी तरसते हैं। कर से कर्म करो विधि नाना, मन राखे जहां कृपा निधाना। हम जो भी कर्म करे ह्रदय में उसके लिए भाव होना चाहिए। हम शरीर से तो कथा सुनने आते लेकिन मन से नहीं आते। श्रीमद् भागवत कथा को मन लगाकर सुनना चाहिए।
आज भगवान श्रीकृष्ण, रुक्मणी विवाह धूमधाम के साथ संपन्न कराया गया। कृष्ण रुक्मणी जैसे ही कथा पंडाल में आए भक्तों द्वारा आतिशबाजी कर फूलों की वर्षा की गई। महिलाओं ने मंगल गीत गाए। उन्होंने आगे कहा कि जिस मन में, जिस दिल में अहंकार होता है वहां भगवान नहीं रहते। जब ह्रदय में अहंकार था तो भगवान नहीं थे। अब अहंकार नहीं है तो ह्रदय में भगवान है। किसी भी मानव को अभिमान नहीं करना चाहिए। आयोजक महिला मंडल की मुख्य चंदा शर्मा ने व्यासपीठ की पूजा की। मुख्य यजमान भगवान रंगनाथ थे। भक्तों ने बड़ी संख्या में शामिल होकर कथा श्रवण की।
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