भजना है तो माधव को भजो, माया को नहीं- घनश्यामदास महाराज

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देवास। भगवान को लाने से पहले देवकी कारागार में कई दरवाजे की काल कोठरी में बंद थी। बेड़ियां पहने हुए थी, लेकिन जब गोकुल जाने का निश्चय किया तो हथकड़ियां और बेड़ियां अपने आप खुल गई, लेकिन जब एक माया रूपी लड़की को लेने गए तो हथकड़ियां लग गई।
यह विचार श्री राधाकृष्ण मंदिर चाणक्यपुरी में चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन सोमवार को व्यासपीठ से घनश्यामदास महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संत कहते हैं जब भगवान जीव के सर पर आते हैं, तो पहरेदार भी सो जाते हैं। संसार में जो अनेक प्रकार के प्रतिबंधन है। प्रतिबंधन रूपी दरवाजे हैं वह सब खुल जाते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह हम इन सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। वही जीव जब माया को सर पर लेता है तो बंधन में जाता है। कई बंधनों में जकड़ जाता है। जब भगवान को जीव सर पर लेता है तो भक्ति में प्रवेश कर जाता है। उन्होंने कहा कि भक्ति ना हो तो भगवान को जानेगा कौन। किसी व्यक्ति ने कहा कि पिता बड़ा होता है या पुत्र तो जवाब आया कि पिता बड़ा होता है। लेकिन जब तक पिता को पिता कहने वाला नहीं होगा तब तक पिता भी अधूरा है। जब तक पुत्र या पुत्री नहीं होगा तो पिता कौन कहेगा। दूसरा सवाल था कि भक्त बड़ा होता है, कि भगवान। लेकिन भक्त नहीं होगा तो भगवान को भजेगा कौन।
इस दौरान सुमधुर लेकर अवतार आज तेरे द्वार आया है तेरा कान्हा, यशोदा मैया धीरे धीरे पालना झुलाना… से भक्त भावविभोर होकर झूमने लगे। उन्होंने आगे कहा कि माया तो सब कोई भजे, माधव भजे न कोई। माया को सब भजते हैं। हमारे पास गाड़ी, घोड़ा, बंगला रूपी संपत्ति इकठ्ठा कर लेते हैं, जिससे क्षणिक सुख मिलता है। व्यक्ति माया के वशीभूत होकर भगवान को भूल जाता है। यदि माया के चक्कर में पड़े रहे तो माधव हमारे पास नहीं आएंगे। व्यक्ति जब माया को भजता है तो जीवनभर दुखी रहता है, लेकिन जब भगवान को भजता है तो सुखी हो जाता है। इसलिए माया का नहीं माधव का स्मरण करें। परमात्मा का स्मरण करने से मानव सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। आयोजक महिला मंडल की चंदा शर्मा एवं भक्तों ने छप्पन भोग का आयोजन किया। मुख्य यजमान भगवान रंगनाथ थे।

 

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