मथुरा में बना है बहन यमुना और भाई धर्मराज का अनोखा मंदिर, भैया दूज के दिन लाखों श्रद्धालु लगाते हैं डुबकी

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भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा होने के कारण मथुरा-वृंदावन की ख्याति विदेशों में भी है। लेकिन क्या आपको पता है कि यहां पर यमुना और धर्मराज का मंदिर भी स्थित हैं। जहां पर लंबी उम्र की कामना लेकर भाई-बहन यमुनाजी में डुबकी लगाते हैं।

मथुरा और वृंदावन ऐसी जगह हैं, जो भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी है। यहां पर न सिर्फ देश बल्कि विदेशों से भी लोग भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन भगवान कृष्ण के अलावा यहां पर एक ऐसा मंदिर है, जिसकी कहानी काफी अनोखी है। आज हम आपको मथुरा में स्थित यमराज और उनकी बहन यमुना जी के प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। यह मंदिर यमुना धर्मराज मंदिर के नाम से फेमस है। देश में एकमात्र भाई-बहन का मंदिर मथुरा शहर में स्थित है। कहा जाता है कि जो भाई-बहन भैया दूज के दिन एक साथ इस मंदिर में स्नान करते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद बैकुंठ मिलता है।

जानिए क्या है मान्यता

मथुरा शहर के बीच स्थित विश्राम घाट पर समराज आर उनकी बहन यमुना का मंदिर बना है। इस प्राचीन मंदिर को यमुना धर्मराज मंदिर के नाम से जाना जाता है। बता दें कि भगवान कृष्ण ने अपने मामा और मथुरा के राजा कंस का वध कर यहां विश्राम किया था। जिसके बाद से इस घाट को विश्राम घाट के नाम से जानने लगे। यहां पर सुबब से शाम तक श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं। श्रद्धालु मां यमुना की पूजा करने के बाद मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। मान्यता है कि जो भी भाई-बहन यहां आराम कर यमुना जी में डुबकी लगाते हैं, उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है। बता दें कि भैया दूज के दिन यहां पर काफी भीड़ होती है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाने के बाद मंदिर में दान-पुण्य करते हैं।

पौराणिक कहानी

पौराणिक कहानी कहानी के मुताबिक सूर्यपुत्र यमराज को एक बार बहन यमुना ने घर आने का निमंत्रण दिया था। जब यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे तो वहां बहन ने उनकी खूब खातिरदारी भी की। बहन की खातिरदारी से खुश होकर यमराज ने यमुना से वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर बहन यमुना ने कहा कि उन्हें किसी चीज की कमी नहीं है। ऐसे में वह क्या वरदान मांगे। इस पर यमराज ने फिर आग्रह किया तो यमुना ने पूछा कि लोगों को उनके प्रकोप से मुक्ति कैसे मिलेगी। 

ऐसे मिला यमुना को वरदान

यमराज ने यमुना को उत्तर देते हुए कहा कि शुक्ल पक्ष की दूज तिथि को जो भाई-बहन विश्राम घाट पर स्नान करेगा। उसे यमराज के प्रकोप से मुक्ति मिल जाएगी और वह बैकुंठ प्राप्त करेगा। इसके बाद स्वयं यमुना और यमराज ने इस घाट पर स्नान किया था। तभी से मंदिर में पहले यमुनाजी और उसके बाद धर्मराज को स्नान कराया जाता है। इसके बाद आरती करके भोग लगाया जाता है। तभी से यह परंपरा आज तक चली आ रही है।

इस समय बंद रहता है मंदिर

धर्मराज मंदिर दोपहर में कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। वहीं शाम 4 बजे से मंदिर के कपाट रात के 8 बजे तक फिर से खुल जाते हैं। भाई दूज के दिन इस मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि धर्मराज मंदिर में भाई यमराज और बहन यमुना की चार भुजाधारी मूर्ति स्थापित है। जहां यमुनाजी के एक हाथ में थाली, दूसरे हाथ में कमल का फूल, तीसरे हाथ में भाई यमराज को टीका लगाते हुए और चौथे हाथ में भाई से वरदान लेते दिख रही हैं।

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