संतों के संवाद से प्राप्त किया जा सकता है सत्य, दया, प्रेम व विश्वास- सद्गुरु मंगलनाम साहेब

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– सत्य को जानने और समझने के लिए संसाधनों की जरूरत नहीं पड़ती

देवास। सत्य शाश्वत है, सत्य नित्य नया है। उसको जानना समझना आवश्यक है। सत्यनाम मन हरण हुआ। यह नाम मन की चालाकियों का हरण कर लेता है, इसलिए सत्यनाम मन हरण और सुहाता भी है, क्योंकि इसके लिए कोई संसाधन की जरूरत नहीं है। ऐसा नहीं है कि इसके लिए गाड़ी लाओ, घोड़े लाओ जब समझोगे या कहीं स्टेज बनाओ तब प्रवचन देंगे। आग लगी आकाश में झर- झर झरे अंगार, संत न होता जगत में तो जल मरता संसार।
यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सद्गुरु कबीर प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी पर पूर्णिमा पर आयोजित चौका आरती के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि
संतों ने सत्य को अपनी वाणी में पिरोकर विश्वास, दया और प्रेम के साथ व्यक्त किया है। जिसके दिल में सत्य, विश्वास होगा वहां यह बात प्रकट हो जाएगी। वरना जैसे बरसात होती है और छाता लगा लिया तो बरसात होते हुए भी भींगता नहीं है। वैसे ही संत हमेशा संदेश देते रहते हैं, लेकिन अपने बनाए हुए क्रूर काम, लोभ, मोह में फंसकर आदमी उस सत्य को ग्रहण नहीं कर पाता। उन्होंने कहा कि यह जीव और मन के अंदर जो जंगल है, जो भटकाव है, उससे तरह-तरह की खरपतवार उत्पन्न हो गई है। उसमें से भिन्नता छांटकर अपना रास्ता, अपनी मंजिल जो परमात्मा है, उसे प्राप्त करना पड़ेगा। हम परमात्मा के पास नहीं पहुंचते और बीच में ही भटक जाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि बुद्ध की पत्नी ने एक बार पूछा कि आप जहां गए थे, वहां परमात्मा मिला। इस पर बुद्ध ने कहा कि मन शांत होने पर ही उसे जाना गया। जानने के बाद अब मुझे सब जगह दिखाई देने लगा। वह सब जगह उपलब्ध है, लेकिन मुझे उसे जानने के लिए एकांत में जाना पड़ा। संसार की झंझट मुझे जानने नहीं दे रही थी। परमात्मा सब जगह मौजूद है, लेकिन वह प्रकट होगा तब। जैसे हवा सब जगह मौजूद है लेकिन पम्प से भरी जाती है वॉल लगाकर। ऐसे ही मानव भटक गया है, पंचर हो गया है। मनुष्य संसार की संगत में भटक गया है जगह-जगह से पंचर हो गया है। संतों के संवाद और संगोष्ठियों द्वारा ही खोए हुए सत्य, दया और विश्वास को प्राप्त किया जा सकता है। जो हमने संसार की कु संगत में खोया है। इस अवसर पर साध संगत को नामदान देकर महाप्रसादी का वितरण किया गया।

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