तो इसलिए है सोनापत्ती का महत्व

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  • विजयादशमी पर एक-दूसरे को बांटी सोनापत्ती

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। विजयादशमी का पर्व क्षेत्र में उत्साह के साथ मनाया गया। कई स्थानों पर रावण का पुतला दहन किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए एक-दूसरे को बधाई दी गई। साथ ही प्रतीक स्वरूप सोनापत्ती एक-दूसरे को बांटकर खुशी मनाई। सोनापत्ती उस्तरा नामक पेड़ से तोड़ी जाती है।

गांव के वरिष्ठों ने बताया कि रावण के पुतले को दहन करने की परंपरा सनातन धर्म में नहीं है। यह पर्व रावण वध के बाद विजय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बेहरी एवं आसपास के कई गांव ऐसे हैं, जहां पर शाम 5 बजे बाद गोधूलि बेला में ग्रामीण नवीन वस्त्र धारण कर गोया में पहुंचे। जहां पर सोनापत्ति उस्तरा का पेड़ है, वहां पूजा-अर्चना करने के बाद हमउम्र के लोगों ने एक-दूसरे को पत्ती दी एवं आपस में गले मिले। बेहरी में भी यह परंपरा निभाई गई। इसके बाद छोटों ने बड़े व्यक्तियों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। रावण दहन स्थान से आने के बाद सभी अपने परिजनों से मिले। बहनों ने अपने भाइयों को मंगल तिलक लगाया। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि कुछ स्थानों पर धीरे-धीरे यह परंपरा पिछड़ रही है और पुतला दहन परंपरा हावी हो गई है, जो हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। बेहरी के बुजुर्ग घीसालाल दांगी व भागीरथ पटेल ने बताया कि रावण का पुतला दहन मतलब श्मशान में जाना, यह किसी भी तरह से उचित नहीं है, लेकिन हमारी संस्कृति विकृत हो गई है। अब रावण की अंतिम यात्रा में जाते हैं। घर आकर उत्सव मनाते हैं। पूर्व में सोनापत्ती देने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि हम जिससे मिले वह व्यक्ति धन-धान्य से संपन्न हो और उसके घर में सोने की बरकत रहे।

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