घर-घर जाकर देते हैं मिट्टी के दीये, बदले में मिलता है अनाज

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मिट्टी के दीये

– गांव में आज भी निर्वाहन कर रहे हैं पुरानी परंपरा

– चाइनिज विद्युत सीरीज ने प्रभावित किया धंधा

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। पिछले कुछ सालों में दीपावली पर्व पर घर को सजाने में विद्युत सीरीज का चलन बढ़ गया है। इनमें चाइनिज विद्युत दीये भी आ रहे हैं, जो सामान्य दीयों की तरह ही रोशनी बिखेरते नजर आते हैं। हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में अब भी मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा का निर्वाहन किया जा रहा है। यहां के कुंभकार परिवार मिट्टी के दीयों के बदले अनाज लेते हैं और यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है।

वर्तमान में चाइना लाइट का दौर इस कदर सिर पर चढ़ा है कि हर घर पर दीपावली में इसी से रोशनी की जाती है। मिट्टी के दीये कम संख्या में ही जलाए जाते हैं। वैसे दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये का अपना अलग महत्व रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दीपावली पर्व पर मिट्टी से बने दीपक से ही लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है।

परंपरा अनुसार बेहरी क्षेत्र में कुंभकार परिवार दीपावली के कई दिन पूर्व से ही मिट्टी के दीपक बनाना प्रारंभ कर देते हैं। ये घर-घर जाकर दीपक देते हैं और बदले में अनाज लेकर प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हैं।

बेहरी में कुंभकार परिवार के जगदीश प्रजापत, संतोष देवकरण प्रजापत ने बताया, कि उनका परिवार बेहरी गांव में वर्षों से यह काम करता आ रहा है। दीपक बनाकर घर-घर देते हैं। इसके बदले अनाज लिया जाता है। हालांकि महंगाई के जमाने में लोग अनाज की मात्रा बेहद कम कर रहे हैं। मुश्किल से 3 क्विंटल गेहूं एकत्रित होता है। पहले वर्षभर का गेहूं किसानों के यहां से दीये के बदले हो जाता था। आज भी हर घर में 21- 51 दीये देते हैं। सभी घर पर दीये अनिवार्य रूप से देने की परंपरा है। किसी घर से अनाज नहीं मिलता तो भी उसके घर पर हमारे परिवार के दिए से ही लक्ष्मी पूजा होती है।

उन्होंने बताया कि दीये के साथ छोटी कुल्हड़ भी बनाई जाती है, जिनमें धानी रखकर लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। बेहरी में यह परंपरा वर्षों से जारी है। बुजुर्ग नादानबाई पटेल ने बताया कि कुम्भकार के घर से दीपक नहीं आते तो लक्ष्मी पूजा अधूरी रहती है। उनके घर से दीपक आने के बाद पहले दीपक की पूजा होती है फिर लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है। यह परंपरा आज भी जारी है।

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