क्रोध की आंधी अपना और पराया नहीं देखती- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

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मंगलनाम साहेब

देवास। कबीर साहब ने कहा है, कि प्रेम नगर में रहनी हमारी। जहां प्रेम मिलता है वहां पहुंच जाते है, वहीं ठहर जाते हैं। जहां क्रोध मिला वहां से छुप जाते हैं, क्योंकि क्रोध काल की आंधी है। क्रोध की आंधी अपने पराये नहीं देखती। दूसरों को मारने के बाद खुद मरता है क्रोध। क्रोध की आंधी में जब खड़े होते हैं तो बुराइयां ढूंढते हैं। अपनी बुराइयां नहीं ढूंढते, दूसरे की बुराइयों को ढूंढते हैं।

यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सद्गुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगलमार्ग टेकरी द्वारा आयोजित चौका विधान, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ना जाने लोगों ने कितने धर्मों की टोपी पहन रखी है। कोई हिंदू है तो कोई मुसलमान तो कोई सिख बन गया। कबीर साहब का सीधा-साधा जीवन है। साहब ने कहा कि सीधे-साधे जीव को चाहे जितने धर्म ने अपनी-अपनी टोपी पहना दी। अब क्या बताएं आदमी को समझने में देर लगती है। अब क्या अपनी-अपनी टोपी पहनकर सब खड़े हो गए। सत्य को समझने गए थे, लेकिन टोपी पहनकर खड़े हो गए। अब सत्य कैसे समझ में आएगा जो हकीकत है। जो श्वास है उसको ना जाने कितने रंग दे डाले लोगों ने। कोई परमात्मा को पूर्व की ओर देखते हैं, तो कोई पश्चिम की ओर।

उन्होंने आगे कहा कि मनमाने ढंग से जीव को इंद्रियों के स्वाद में भूले भटके हुए हैं। सब संसारी रंग में रंगने को खड़े हैं। फिर कैसे सत्य को उपलब्ध होंगे। उपलब्ध होना ही नहीं चाहते सत्य को। जीवन में आने ही नहीं दे रहे हैं। सत्य निर्विकार है, जिसके ऊपर कोई आवरण नहीं है। सत्य इतना सूक्ष्म है कि उसको अपने श्वास की तरफ लाना पड़ेगा। जब आप अपने आप को उपलब्ध होंगे। जब आप अपने स्वरूप में उपलब्ध होंगे। उस समय सारे धर्म और मजहब समाप्त हो जाएंगे। अपने स्वरूप को जान ही नहीं रहे हैं। जिस दिन सत्य को निज स्वरूप को उपलब्ध होंगे तब सारे धर्म हटाने पड़ेंगे। तभी निर्बेर होंगे। जिस दिन तुम अपने स्वरूप में आ जाओगे उस दिन परब्रह्म में समा जाओगे। कार्यक्रम के पश्चात साध संगत को महाप्रसादी वितरित की गई। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।

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