गांव में 30 वर्ष पुरानी प्रथा फिर से आरंभ हुई

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रात्रि में मां कात्यायनी के दरबार में हो रहा है गरबा

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। क्षेत्र में किसान परिवारों से जुड़े कुछ गांव ऐसे हैं, जहां पर दशहरा पर्व के बाद 5 दिन तक गरबा उत्सव मनाया जाता है। इस गरबा उत्सव की विशेषता यह रहती है कि इसमें पुरुष वर्ग भी भाग लेते हैं व उत्साह के साथ भजनों में शामिल होते हैं।

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इस प्रथा में मटकी के अंदर गर्बी माता की स्थापना की जाती है और मटकी प्रजापत परिवार के यहां से लाई जाती है। इस बार अवल्दी ग्राम के संतोष प्रजापत के यहां से मटकी मंगवाई गई। विधि-विधान से गरबी माता को पूरे नगर में भ्रमण करवाया गया।

पं. अंतिम उपाध्याय व राजेंद्र उपाध्याय ने विधि-विधान से पूजन-अर्चन करते हुए मटकी की स्थापना की। बुजुर्गों ने बताया कि पांच दिवसीय गरबा प्रथा किसी कारणवश अवरोधित हो गई थी, लेकिन आपसी समझाइश और परंपरा का महत्व मानते हुए बुजुर्गों व नवयुवकों ने फिर से इस प्रथा को आरंभ करने में सहयोग दिया।

वरिष्ठ श्रद्धालु नाथूसिंह सेठ, मूलचंद पाटीदार, राम रतन पटेल, प्रहलाद गिरि गोस्वामी, शिवनारायण वर्मा, शांतिलाल पाटीदार, आत्माराम बागवान, बद्रीलाल पाटीदार, आत्माराम पाटीदार, पूर्व सरपंच रामचंद्र दांगी, कुंवरजी पाटीदार, भोजराज पाटीदार, केदार पाटीदार, गंगाराम बागवान, शिवनारायण विश्वकर्मा, संतोष पाटीदार आदि ने बताया कि इस वर्ष से फिर से गरबी प्रथा आरंभ हो गई है। शाम होते ही गांव के पुरुष महिलाएं कात्यायनी देवी मंदिर परिसर के सामने गरबा करने एकत्रित होते हैं और देर रात तक लोक भजनों को गाते हुए माता की आराधना कर रहे हैं। पांच दिवस बाद विधि-विधान से गरबी का विसर्जन समीप की नदी में किया जाएगा। क्षेत्रीय भाषा में इसे आसन बैठाना कहते हैं।

मुख्य परंपरा यह है कि दुग्ध उत्पादक किसान परिवार में पशुपालन से जितना भी दूध आता है, उसका उपयोग नहीं करते हैं और ना ही बेचते हैं। बेहरी में भी यह प्राचीन परंपरा कई वर्षों से संचालित है।

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