बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। पूरे क्षेत्र में ऋषि पंचमी पर्व रविवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने व्रत रखने के साथ-साथ प्रकृति संतुलन के लिए आंधीझाड़ा नामक पौधे के पत्ते और डंठल से स्नान किया। पूजा-अर्चना करने के बाद मोरधन से बना फरियाल किया।
ऋषि पंचमी की पूजा के लिए महिलाओं ने रविवार को सूर्योदय से पूर्व स्नान किया। पूजा स्थान पर गोबर से लेपन कर और चौकोर मंडल बनाकर उस पर सप्त ऋषि बनाए। दूध, दही, घी, शहद, फल और जल से सप्त ऋषि का अभिषेक करते हुए पूजा संपन्न की। मंदिरों में महिलाओं का दर्शन के लिए तांता लगा रहा। महिलाओं ने भजन-कीर्तन किया।
राधाकृष्ण मंदिर की पुजारन श्यामूबाई बैरागी ने बताया कि ऋषि पंचमी पर्व वैज्ञानिक अवधारणाओं से जुड़ा हुआ सनातन पर्व है। भादौ मास में मौसम परिवर्तन होता है। इसके चलते अधिकतर स्थानों पर आंधीझाड़ा नामक औषधि भरपूर मात्रा में मिलती है। कुछ दिनों बाद यह औषधि सूखकर विलुप्त हो जाती है। इस औषधि का असर यह है, कि इसके पत्ते और डंठल सर पर रखकर नहाने से वात रोग एवं पित्त रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। यह औषधीय पौधे भादौ मास में ही दिखाई देते हैं, शेष दिनों में इन्हें ढूंढना मुश्किल रहता है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर की पुजारन अनसूया बैरागी ने बताया कि ऋषि पंचमी पर मोटा अनाज में शामिल मोरधन का फरियाल बनाकर खाया जाता है। यह भी प्राकृतिक औषधि है। यह विशेष प्रकार की घास का बीज रहता है। इसके खाने से शरीर में विटामिन डी और प्रोटीन की भरपाई हो जाती है। जो लोग उपवास रखते हैं, उनके लिए मोरधन का उपयोग बहुत लाभदायक रहता है।
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