इसी स्थान पर चव्यन ऋषि ने की थी तपस्या
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। बागली जनपद क्षेत्र में करौंदिया ग्राम पंचायत अंतर्गत च्यवन ऋषि की तपस्थली प्राचीन शिवलिंग जलमग्न स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
यह स्थान बागली मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर एवं देवास में मुख्यालय 70 किलोमीटर दूर है। इस स्थान पर श्रावण माह में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। इंदौर-नागपुर हाईवे पर खेड़ाखाल से दो किलोमीटर दूरी पर स्थित यह स्थान विंध्याचल पर्वत श्रेणी अंतर्गत होने से प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर दिखाई देता है। यह स्थान प्राचीन ऐतिहासिक तथ्य लिए हुए हैं।
माना जाता है, कि आयुर्वेद के जनक चव्यन ऋषि ने यहां पर तपस्या के दौरान कई औषधियों की खोज की थी। उनकी तपस्थली होने के कारण यहां कई चमत्कार दिखाई देते हैं।
कहा जाता है, कि प्राचीन समय में इस स्थान पर पानी का स्रोत नहीं था। ऋषि ने अपने तप के बल से इस स्थान पर साक्षात नर्मदा को प्रकट किया और नर्मदा कुंड से निकलकर यह धारा जलमग्न शिवलिंग कुंड में जाती है। आज भी वह कुंड बना हुआ है।
श्रद्धालुओं और पंचायत द्वारा यहां पर स्नान कुंड बना दिए गए हैं। वर्ष में विशेष स्नान पर्व पर यहां मेला लगता है। भूतड़ी अमावस्या पर बड़े मेले का आयोजन होता है।
खुदाई के दौरान यहां पर हजार साल पुरानी पाषाण प्रतिमाएं मिली है। इससे इस स्थान की महत्वता और बढ़ गई। कालांतर में धर्मशाला और अन्य मंदिर भी बनाए गए। यहां से निकलने वाली नदी का नाम चंद्रकेश्वर नदी हो गया है, जो 32 किलोमीटर का सफर तय करके नर्मदा में विलय होती है।
मंदिर के आसपास कई धार्मिक, पौराणिक स्थान हैं, जिसमें भगवान रामदेव के चरण, पुरानी संत गुफाएं और चंडी माता व मंदिर भैरव महाराज मंदिर यही आसपास विराजित है।
इतिहासकार बताते हैं, कि यह स्थान उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समय का है। यहां पर मिली प्राचीन मूर्तियां अजंता एलोरा में बनी मूर्तियों से मेल खाती है। यहां की विशेषता यह है कि यहां विराजित शिवलिंग वर्ष के 12 महीने जलमग्न रहता है और निकलने वाली जलधारा भी नर्मदा के जल के समान प्रतीत होती है।
श्रावण के महीने में यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है। कुछ वर्ष पूर्व पुराने स्नान कुंड तोड़कर नए स्नान कुंड श्रद्धालुओं के लिए बनाए गए हैं। प्राचीन गुफाओं का रहस्य अभी भी बना हुआ है। स्थानीय लोग बताते हैं, कि इन गुफाओं का आपस में कनेक्शन है, लेकिन सफाई नहीं होने की वजह से इन गुफाओं में झाड़ियां उग आई हैं, जिससे जहरीले जीव-जंतुओं का डर बना रहता है।
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