देवास। श्री राधागोविंद धाम राजाराम नगर में दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के आठवें दिन जगदगुरुत्तम स्वामी कृपालुजी महाराज की प्रमुख प्रचारिका धामेश्वरी देवी ने बताया, कि वेदों में कहा गया है कि भगवान की प्राप्ति वास्तविक गुरु की शरणागति से ही हो सकती है।
वेदों में कहा गया है ईश्वरीय विषय के तत्व ज्ञान के लिए श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, कि रामायण कहती है गुरु शास्त्र, वेद का पूर्ण ज्ञाता भी हो और जिसने ईश्वर साक्षात्कार भी किया हो। वेदों-शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि गुरु और भगवान अलग न होकर एक ही तत्व है।
भागवत में कहा गया है- भगवान अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! तू मुझे ही गुरु मान। अतः हरि और गुरु की शरणागति उनके प्रति पूर्ण समर्पण से ही हमारा काम बनेगा। धामेश्वरी देवी ने कहा ज्ञानमार्गी से भक्तिमार्गी श्रेष्ठ है, क्योंकि ज्ञानमार्गी का पतन हो जाता है। ज्ञानी को अपने ज्ञान का मिथ्या अभिमान होता है, बल्कि भक्त अपने आप को दीन-हीन, पतित मानता है तो उस पर दीनानाथ भगवान की कृपा जल्दी हो जाती है।
ज्ञानी अपने बल पर चलता है, जबकि भक्त भगवान के बल पर आश्रित होता है। इसलिए भक्त का पतन नहीं होता, क्योंकि वहां पर गुरु उसका योगक्षेम वहन करता है। भगवान के पूर्ण शरणागत होने पर ही माया से पार हो सकते हैं। इस प्रकार ज्ञान मार्ग को बहुत कठिन और भक्ति मार्ग को अत्यंत सरल बताया गया है।
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