देवास। समाज में आज के समय में संस्कार गोष्ठियों का आयोजन होना चाहिए, क्योंकि हमारी युवा पीढ़ी वर्तमान में संस्कार विहीन हो रही है। हम उत्सव तो मना रहे हैं, लेकिन उत्सव का महत्व हम भूलते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमारी परंपराएं समाप्त होती जा रही हैं। माताएं आज के समय मे अपनी मांग में सिंदूर की जगह कुमकुम भर रही हैं, जबकि सिंदूर दान की परंपरा पूर्वकाल से चली आ रही है। सिंदूर का हमारी संस्कृति में वैज्ञानिक, धार्मिक व आध्यात्मिक रूप से बड़ा महत्व है।
यह विचार मोहरी कुआं तोड़ी स्थित गंगा पार्क कॉलोनी के पास चल रही श्रीशिव महापुराण कथा के पांचवे दिन व्यासपीठ से पुष्पानंदन महाराज कांटाफोड़ वाले ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि भगवान महादेव ने शिव महापुराण के माध्यम से संस्कारयुक्त जीवन की शिक्षा मानव जीव को प्रदान की है। जब हमारे जीवन में संस्कार होंगे तो विकार अपने आप खत्म हो जाएंगे। संस्कार ही विकारों से बचाता है। विकार से बचना है तो जीवन में संस्कारों को अपनाएं।
उन्होंने कहा, कि विकारों से बचने के लिए संस्कार अनिवार्य है, इसलिए सनातन धर्म में 16 संस्कारों की परंपरा विद्यमान की गई है। 16 संस्कारों का निर्माण महादेव के द्वारा किया गया। 16 श्रृंगारों का रहस्य पार्वती ने शिव महापुराण के माध्यम से समाज को बताया है। भगवान श्रीगणेश का जन्म महोत्सव मनाते हुए समाज को शिक्षा दी, कि अगर आप समाज में उच्च पदों को पाना चाहते हैं, तो आपका जीवन गजानंद की तरह होना चाहिए। जो सबकी सुनता है, वही एक दिन महान बनता है। जब जीव का अपनी वाणी पर नियंत्रण रहेगा तो समाज उसकी वंदना जरूर करेगा। गजानंद ने अपने चरणों में मूषक को स्थान प्रदान करके यह शिक्षा मानव समाज को दी है, कि मूषक मन है। जिस व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होगा वह एक दिन रिद्धि-सिद्धि को जरूर प्राप्त कर लेता है।
कथा में श्रीगणेशजी का जन्मोत्सव प्रजापति कांकरवाल परिवार व श्रद्धालुओं द्वारा धूमधाम से मनाया गया। आयोजक मंडल एवं श्रद्धालुओं ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती की। कथा का आयोजन प्रतिदिन दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक किया जा रहा है। सैकड़ों धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।
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