गांव की आस्था के केंद्रबिंदु नारायणदास महाराज 105 वर्ष की आयु में चिर निद्रा में लीन

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– गांव में भक्तों ने जगह-जगह गुरुदेव की पूजा अर्चना की

सिरोल्या (अमर चौधरी)। भू लोक यात्रा का समापन कर वह देवपुरुष परलोक गमन कर सर्व समाजजनों को भाव विह्वल करके स्वयं परमात्मा से एकाकार हो गए। सिरोल्या के गायत्री मंदिर की शक्तिपीठ पर संस्थापक नारायणदास महाराज का 105 वर्ष की उम्र में शुक्रवार को देवलोकगमन हो गया। वे बाल ब्रह्मचारी थे।

पं. नारायणदास महाराज का जीवन शुरुआत से ही मंदिर में रहा। उन्होंने काफी तपस्या कर सिरोल्या के गायत्रीनगर को मंदिर के रूप में बनाया। उसके बाद उन्होंने गायत्री मंदिर की स्थापना की। उन्होंने उनके जीवन में क्षेत्र के लिए ऐसे कई बड़े काम किए जो सराहनीय हैं। जैसे गांव-गांव जाकर यज्ञ किया। अगर मंदिर में कोई भक्त मनोकामना लेकर आता तो महाराज के आशीर्वाद के बाद भक्त की मनोकामना पूर्ण हुई है। ऐसे कई उदाहरण हैं। शक्तिपीठ सहित आसपास के कई गांवों के भक्त उनका आशीर्वाद लेने के लिए आते रहे हैं। उनके देवलोकगमन पर गांव में दिनभर शोक रहा‌। उनके मुख से अगर कोई वचन निकलता तो वह सत्य साबित होता।

नारायणदास महाराज जयपुर राजस्थान के थे। उनका जन्म 19 जुलाई 1919 में हुआ था। किशोरावस्था में राजस्थान जयपुर में परिवार को छोड़कर सिरोल्या आए थे। ग्रामवासियों ने उन्हें श्रीराम मंदिर का पुजारी बना दिया। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य सिरोल्या प्रवास पर 1959 में आए, तब उनकी भेंट महाराज से हुई। आचार्य ने उस समय पंचकुंडीय गायत्री महायज्ञ किया था। नारायणदास महाराज ने व्यासपीठ से भागवत कथा एवं प्रज्ञा पुराण भी कही है।

उन्होंने धार्मिक कार्यक्रम की राम लीलाएं भी गांव में आयोजित की। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का पत्र शांतिकुंज हरिद्वार से 1978 में मंदिर बनाने का काम पूरा करें। राजमाता विजियाराजे सिंधिया ने गायत्रीनगर में गायत्री मंदिर का भूमिपूजन किया। 1965 से गंगा दशमी पर मां गायत्री यज्ञ की शुरुआत की, जो अब तक जारी है जो आगे भी जारी रहेगी।
ग्रामवासियों के मुताबिक गायत्रीनगर में एक समय ऐसा जंगल था, जिसमें मवेशी चरते थे। जहां पर रात में जाने से लोग डरते थे। मंदिर की स्थापना होने पर यहां नई आबादी बस गई। सन् 1981 में 23 एवं 24 फरवरी में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य गायत्री मंदिर में पहुंचकर उनके द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की गई एवं तीन दिन तक वे सिरोल्या में रहे। शाम को प्रवचन भी दिए।
मंदिर समिति एवं पुजारी नारायणदास महाराज ने हरिद्वार पहुंचकर डॉ. प्रणव पंड्या से 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के लिए परमिशन मांगी थी। काफी कोशिश करने के बाद पंड्याजी ने 1 वर्ष बाद महायज्ञ करने की परमिशन दी। डॉ. प्रणव पंड्या के सानिध्य में 12, 13, 14 दिसंबर 2014 को प्रज्ञेश्वर महादेव, गंगा, यमुना, सरस्वती, राधेकृष्ण (द्वारकाधीश) की प्राण प्रतिष्ठा हुई। 12 दिसम्बर को कलश यात्रा एवं 13 को गायत्री महायज्ञ 14 को प्रवचन के बाद गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति एवं भंडारा किया गया। महाराज ने समस्त सदस्यों के बीच विचार रखे थे, कि शांतिकुंज में जाकर अनुमति लेंगे, कि 2026 में पुन: हमारे गांव सिरोल्या में 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं तुलसी विवाह हो। समस्त परिजनों ने कहा कि उनके विचार का अनुसरण कर इच्छाएं पूर्ण की जाएगी। प्रखर प्रज्ञा, सजल श्रद्धा गुरुजी माता की स्थापना हो गई है, जिनकी प्राण प्रतिष्ठा रह गई है, जो आगे की जाएगी।
कब ली महाराज ने अंतिम सांस-
पं. नारायणदास महाराज ने अंतिम सांस 12:16 बजे ली। क्षेत्र एवं जिले के विभिन्न हिस्सों से भक्त मंदिर पहुंचे। उनके अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित की। उसके बाद दोपहर 3 बजे बैंड-बाजे, मधुर संगीत के साथ संत सिंगाजी के भजन-कीर्तन के साथ गायत्री मंदिर से अंतिम यात्रा रथ में निकाली गई। जो प्रमुख मार्गो होते हुए पुन: गायत्री मंदिर पहुंची, जहां उनका अंतिम संस्कार गायत्री पद्धति के साथ किया गया। अंतिम संस्कार के दौरान भावांजलि में हाटपिपल्या शक्तिपीठ के प्रमुख मनोहर गुरु ने नारायणदास महाराज की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा, कि वे एक महान पुरुष थे। उनका देहावसान पूरे क्षेत्र के जन-जन को शोकाकुल कर गया। ये वही युगपुरुष थे, जिन्होंने अपने जीवन पर्यन्त वेदमाता, देवमाता, जगत जननी मां गायत्री की उपासना कर हमारे मन मस्तिष्क में बचपन से ही आस्था का बीजारोपण किया। इस क्षेत्र में गायत्री परिवार को बढ़ाया है। हम रोयें जग हंसे, जग रोयें हम हंसे.. ऐसे कर्म जीवन में करें। यही जीवन का ध्येय है।

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