बारिश नहीं होने से खेतों में दरारें, मक्का फसल भी नष्ट होने के कगार पर

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कुएं-बावड़ी, नदी-तालाब में भी पानी का स्तर कम
 बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। मानसून जैसे-जैसे लंबी दूरी बना रहा है, वैसे-वैसे किसानों की चिंता बढ़ रही है। क्षेत्र में मक्का व सोयाबीन वाली जमीन अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी है। हल्के खेतों की फसल तो लगभग सूखने के कगार पर आ गई है। क्षेत्र में मक्का की फसल भी मुरझा रही है।
बुजुर्ग किसान भागीरथ पटेल का कहना है, कि सन 1968 में ऐसी स्थिति निर्मित हुई थी। अगस्त माह के बाद पानी बिल्कुल नहीं गिरा था। नतीजा यह हुआ कि पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ा और लोग भूखमरी से परेशान होकर इधर-उधर पलायन कर गए। इस बार भी अगस्त माह पूरा सूखा निकल गया। मानसून की बेरुखी किसानों के साथ-साथ आमजन को भी चिंतित कर रही है। मौसम में गर्मी-उमस का एहसास हो रहा है। 8 दिन और पानी नहीं गिरा तो पशु भी प्यास से व्याकुल रहेंगे। नदी-नाले में भी थोड़ा पानी आया था, वह सूखने लगा है। मवेशी मालिकों ने पानी की कमी एवं घास की कमी के कारण मवेशियों को जंगल में चरने छोड़े थे, लेकिन वहां भी पानी एवं घास नहीं है। पानी की कमी से यह फसल प्रभावित हो गई है। आगामी रबी फसल में भी परेशानी होगी।

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