आध्यात्मिक जागरण से ही हमारा देश बन सकता है विश्व गुरु

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: सनातन अध्यात्म ज्ञान को जानो- साध्वी रेणुका बाईजी
: ग्राम मात्मोर में सतपाल महाराज की शिष्याओं ने दिया अध्यात्मिक संदेश
बागली (हीरालाल गोस्वामी)।
हम तो उस सनातन अध्यात्मज्ञान की चर्चा करते हैं जो था, है और रहेगा। बाबा नानक भी कहते हैं “आदि सचु जुगादि सचु, नानक होसि भी सचु” सनातन धर्म का मतलब होता है कि जिसका कभी अंत नहीं होता है, जो शाश्वत है, अर्थात जो पहले भी था अब भी है और आगे भी रहेगा।

अखिल भारतीय सामाजिक व आध्यात्मिक संस्था ‘मानव उत्थान सेवा समिति’ की देवास जिला शाखा द्वारा ग्राम मात्मोर में समाजसेवी बद्रीलाल सैनी, जगदीश सैनी, रामेश्वर सैनी की मां स्व. तुलसीबाई सैनी की स्मृति में आयोजित रात्रिकालीन आध्यात्मिक समारोह में सतपाल महाराज की शिष्या रेणुका बाईजी ने उक्त आध्यात्मिक संदेश देते हुए कहा आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। आत्मा तो प्रभु का अंश है जिसका कभी नाश नहीं होता। शक्ति का सिद्धांत भी कहता है कि शक्ति का कभी जन्म नहीं होता और न ही शक्ति का कभी नाश होता है। आज विज्ञान भी इसकी खोज कर रहा है।
उन्होंने कहा हमें आध्यात्मिक जागरण के लिए सुषुप्त चेतना को जागृत करना होगा। यह प्रक्रिया हमारे अंदर से ही शुरू होना चाहिए और प्रभु का ध्यान उस प्रक्रिया को शुरू करता है। मन की जो वृत्तियां हैं इनको हम जब अंतर्मुखी करेंगे तो हमारे जीवन के अंदर भी सद्भावना पैदा होगी।

संतश्री ने कहा हम बार-बार ड्राइवर से यही कहते हैं कि भाई सड़क पर ध्यान दें। बच्चा परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं लाता है तो हम उसे यही कहते हैं कि बेटा तू ध्यान से पढ़। हम हर जगह ही ध्यान की बात करते हैं लेकिन भगवान की भक्ति में हम अक्सर ध्यान को ही भूल जाते हैं।
साध्वी जी ने कहा आत्मज्ञान के प्रचार- प्रसार से ही आध्यात्मिक जागरण संभव है और आध्यात्मिक जागरण से ही हमारा देश विश्व गुरु बन सकता है।


इस अवसर पर साध्वी प्रभावती बाईजी ने अपने उद्बोधन में कहा आत्म तत्व अत्यंत सूक्ष्म है। बोध होने के पश्चात भी प्रायः यह व्यक्ति के पास टिक नहीं पाता। इसलिए निरंतर मन को उसमें लगाए रखने के लिए सत्संग एवं स्वाध्याय की आवश्यकता पड़ती है। गुरु के उपदेश से उसकी एक झलक मिल जाने से ही जीव की मंजिल तय नहीं हो जाती, बल्कि मंजिल की ओर बढ़ने का मार्ग दिख जाता है।

अध्यात्म प्रेमियों को साध्वीजी ने अपनी ओजस्वी वाणी में कहा साधु-संत सतत इस चेष्टा में लगे रहते हैं कि जीव को उसके लक्ष्य के प्रति सचेत करते रहें और उसे मार्ग से भटकने न दें। इसलिए सत्संग, सुमिरन-भजन को जीवन में उचित महत्व दें और उसके लिए समय अवश्य निकालें। धीरे-धीरे प्रगति करते हुए एक दिन अनायास मंजिल पर पहुंच जाएंगे।
साध्वी शारदा बाईजी ने ज्ञान, भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत मधुर भजन प्रस्तुत करते हुए कहा ज्ञान नम्रता से समझ में आता है न कि अहंकार से, इसलिए सेवा, सत्संग, भजन-सुमिरन व संतों की सेवा से अज्ञान का अंधकार दूर होता है।
कार्यक्रम में सरपंच हीरालाल जाट, संदीप राठौर, आत्माराम जाट, रामाजी राड़, शोभाराम सैनी, दयाराम, गणेश, देवकरण, मंतोष, वासुदेव सहित बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित थे।

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