आखिर हम बीमार होते ही क्यों है

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  • क्या प्रारब्ध भी हमारे बीमार होने का एक कारण
  • डॉ. शशिकला यादव ने तथ्यात्मक विश्लेषण कर बताए स्वस्थ्य रहने के उपाय

हमारा शरीर समय-समय पर विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। सवाल यह उठता है कि आखिर हम बीमार होते ही क्यों है। सबसे बड़ा धन निरोगी काया है। हमें क्या करना चाहिए, जिससे हमारी काया हमेशा स्वस्थ्य रहे। हमारे प्राचीन ग्रंथों में स्वस्थ्य रहने के उपाय बताए गए हैं। इनके आधार पर अगर हमारी दिनचर्या एवं खानपान होता है तो हम पूर्ण रूप से स्वस्थ्य रह सकते हैं। योगाचार्य डॉ. शशिकला यादव बीमार होने के कारणों का तथ्यात्मक विश्लेषण किया है। डॉ. यादव का मानना है, कि सामान्यत: बीमार होने के कारणों को समझने के लिए इन्हें चार भागों में बांटा जा सकता है और प्रयास करें तो हम इन कारणों को दूर भी कर सकते हैं।

भोजन- लगभग 25 प्रतिशत रोग भोजन की गड़बड़ी से संबंध रखते हैं।

– जरूरत से ज्यादा भोजन करना।

– स्वादिष्ट चीजों का अधिक मात्रा में सेवन करना।

– तला हुआ मिर्च-मसालों वाला भोजन करना।

– सलाद, फल, साग, भाजी का कम व्यवहार करना।

– चबा-चबाकर भोजन को ठीक से नहीं करना।

– जल पीने की सही जानकारी का अभाव होना। जब जल नहीं पीना चाहिए, तब हम पीते हैं एवं जब पीना चाहिए, तब नहीं पीते।

व्यायाम – इसी प्रकार 25 प्रतिशत रोग रोजाना व्यायाम नहीं करने से होते हैं।

– प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर तेज चलना एक अच्छा व्यायाम है।

– योग के कुछ आसान एवं प्राणायाम हमें नियमित करने चाहिए, ताकि स्वस्थ रह सकें।

– व्यायाम एवं योगासन के पश्चात थोड़ी देर शवासन करने से अनेक बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

भावनाएं- भावनाओं और संकल्पों का स्वास्थ्य से अधिक सीधा संबंध है। अच्छा स्वास्थ्य संभावनाएं एवं विचारों पर निर्भर करता है।

– क्रोध, ईर्ष्या, निंदा एवं अहंकार जैसी नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए यदि रचनात्मक तथा सकारात्मक विचारों को हम अपनाएं तो जीवन का सही अर्थों में आनंद ले सकते हैं।

प्रारब्ध- ‘पूर्वजन्मक्रितम् पाप व्याधिरूपेण जायते’ अर्थात जन्मांतरिय पापकर्म का व्याधिरूप से प्राकट्य होता है। सादग्रन्थ यह बताते हैं, कि प्रारब्ध रूप इस असत कर्म का विनाश भोग करने से होता है। प्राकृतिक आपदाएं अनजाने रोग, वंशानुगत रोग, दुर्घटना एवं जीवन की कुछ अनिवार्य घटनाएं, जिन्हें हम रोक नहीं सकते, उन्हें भोगना ही पड़ता है। इन पर किसी का वश नहीं चलता। इन्हें तो धैर्यपूर्वक एवं हंसते-हंसते स्वीकार करना चाहिए।

इस तरह देखा जाए तो यदि भोजन, व्यायाम तथा भावनाओं को हम नियंत्रित कर ले तो अधिकांश रोगों की रोकथाम हम स्वयं कर सकते हैं और ऐसा करना प्राय: पूरी तरह से हमारे अधिकार क्षेत्र में है। अत: नियमित जीवनशैली को अपनाते हुए शरीर की ऊर्जा को बढ़ाकर उसे सकारात्मक उपयोग में लाकर अपना जीवन सुखी बना सकते हैं।

तो आइए, आज ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होकर हम इस आरोग्यं चर्या को अपने दैनंदनी जीवन में सही रूप से अमल में लाएंं। संकल्प शक्ति से हमारा यह जीवन सुखमय में हो जाएगा और हम साधना पथ में सुगमता से अग्रसर हो सकेंगे।

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