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पुणे: महाराष्ट्र हवेलियों का शहर रहा है। खासकर पुणे (Pune) में ऐसे सैकड़ों हवेली है जो ऐतिहासिक विरासत के साक्षी है, लेकिन शहर की हवेलियों की खस्ता होती हालत चिंता की वजह बनती जा रही है। अक्सर किसी न किसी हवेली के स्लैब गिरने की घटना सामने आती रहती है। यह कभी भी जानलेवा साहित हो सकता है। शहर के मध्यवर्ती पेठों (Peths) में पुरानी हवेलियां एक गंभीर समस्या बनी हुई है। पिछले कुछ सालों से हवेलियों का मुद्दा पेंडिंग है। इन पुरानी हवेलियों में रहने वाले नागरिक यहां की समस्या से त्रस्त है। अब इन हवेलियों में रहने वाले नागरिकों ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को पत्र लिखकर इन समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाया है।
पुणे के महल अस्त-व्यस्त हो गए है। मरम्मत की अनुमति नहीं मिलती, इसलिए नए निर्माण का कार्य नहीं हो पा रहा है। नागरिकों ने प्रश्न किया है कि वाडा गिर जाए, तो हम कहां जाएंगे। यह सवाल शनिवार वाडा क्षेत्र के नागरिकों ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में किया है। साथ ही इस समस्या से बचाने की भी अपील प्रधानमंत्री से की है।
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100 मीटर दायरे में निर्माण पर रोक
पुरातत्व विभाग ने शनिवार वाडा और पातलेश्वर के 100 मीटर क्षेत्र में नए निर्माण पर रोक लगा दी है। 100 से 300 मीटर तक के निर्माण के लिए पुरातत्व विभाग से एनओसी लेना अनिवार्य है। इस संबंध में राज्यसभा द्वारा नियुक्त समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में एक और प्रश्न उठाया गया है। कुछ नागरिकों ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका पर सुनवाई अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। इसके कारण शनिवार वाडा इलाके का पुराने वाडों का मुद्दा फिर से चर्चा में आया है।
दोबारा भी नहीं बनाया जा सकता
शनिवार वाड़ा के आसपास के कई पुराने महल जीर्ण-शीर्ण हो गए है। जहां मरम्मत नहीं हो पा रही है। इन महलों की मरम्मत करना भी असंभव है, लेकिन मौजूदा कानून के मुताबिक इसे दोबारा भी नहीं बनाया जा सकता है। इसी पृष्ठभूमि में शनिवारवाड़ा और पातालेश्वर के 100 मीटर के क्षेत्र में रहने वाले दो सौ से अधिक नागरिकों ने एक साथ आकर ‘शनिवारवाड़ा कृति समिति’ का गठन किया है। हाल ही में कमेटी की बैठक हुई थी। इस कमेटी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा गया है। बैठक में निर्णय लिया गया कि इस अधिनियम से प्रभावित नागरिकों की संख्या, उनका पता और मोबाइल नंबर की सूची तैयार कर केंद्र सरकार को शीघ्र भेज दी जाए।
प्रत्येक राष्ट्रीय स्मारक की रक्षा और संरक्षण करते वक्त उसके आकार और आसपास की वास्तविकता के अनुसार निर्णय लेन की आवश्यकता है। शनिवार वाडा की बात करें तो यहां चारों ओर घनी आबादी है, जिसमें हजारों नागरिक रहते हैं। वे अपने जर्जर मकान भी ठीक नहीं बना पा रहें है। इसलिए 100 मीटर प्रतिबंधित क्षेत्र में हजारों नागरिक अपनी जान जोखिम में डाल कर रह रहे है।
– देवेंद्र सातकर, अध्यक्ष, शनिवारवाडा कृति समिति
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