कान्हा की नगरी में ऐसे मनाई जाती है होली, जानिए क्यों पूरे विश्व में फेमस है ब्रज की होली

Posted by

Share

[ad_1]

कान्हा की पावन नगरी यानि की ब्रज की होली का हिस्सा बनने के लिए देश-विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। ब्रज में कई प्रकार की होली खेली जाती है। इन परंपराओं का सदियों से पालन किया जा रहा है। इस पावन भूमि पर श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ होली खेली थी।

कान्हा की नगरी ब्रज में होली के आयोजनों की तैयारियां जोरो-शोरों से की जा रही हैं। देश-विदेश से लाखों की संख्या में लोग बृज की विश्व प्रसिद्ध होली में हिस्सा लेते हैं। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के ब्रज आने की उम्मीद जताई जा रही है। आपको बता दें कि ब्रज की होली पूरे विश्व में फेमस है। इस साल बरसाना की फेमस लड्डू होली 27 फरवरी होगी तो उसके अगले दिन यानि की 28 फरवरी को बरसाना में लठ्ठ मार होली खेली जाएगी। वहीं बरसाना की होली के बाद नंदगांव में 1 मार्च को लठमार होली का आयोजन किया जाएगा। भगवान कृष्ण की नगरी में होली की धूम देखते ही बनती है। आइए जानते हैं कि इस साल ब्रज में होली का आयोजन किस प्रकार होगा।

ब्रज की विश्व प्रसिद्ध होली

होली यूं तो हर जगह धूमधाम से खेली जाती है। लेकिन श्रद्धालुओं और विदेशी पर्यटकों को मथुरा-वृंदावन की होली खूब भाति है। इस दौरान फूलों वाली होली, लठमार होली, लड्डू होली, गोबर या कीचड़ वाली होली औऱ फूलों वाली होली मनाई जाती है। कीचड़ से होली खेलने की परंपरा ब्रज में सदियों से चली आ रही है। इस दौरान लोग एक-दूसरे पर रंगो की जगह कीचड़ डालकर होली का त्योहार मनाते हैं। रंगों की होली खेलने के बाद अगले दिन यानि की धुलेंडी के दिन ब्रज में कीचड़ वाली होली खेली जाती है।

ब्रज की होली के आयोजन

27 फरवरी – बरसाना की लड्डू होली

28 फरवरी – बरसाना में लठमार होली

01 मार्च – नंदगांव की लठमार होली

03 मार्च – रंगभरनी एकादशी वृंदावन परिक्रमा

मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर होली

04 मार्च – गोकुल में छड़ीमार होली

07 मार्च – होलिका दहन, फालैन में जलती होलिका से पंडा निकलने की लीला

09 मार्च – दाऊजी का हुरंगा, चरकुला नृत्य मुखराई

15 मार्च – रंगजी मंदिर में होली उत्सव वृंदावन

लड्‌डू होली 

द्वापर युग में राधा रानी और उनकी सखियों ने भगवान श्री कृष्ण के साथ होली खेलने के लिए दूत को न्योता देने के लिए नंदगांव भेजा था। जब दूत ने राधारानी के होली खेलने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया तो बरसाना वासी खुश होकर एक-दूसरे पर लड्डू फेंकने लगे। जिसके बाद से लड्डू होली की शुरूआत हो गई। तब से लेकर आजतक इस परंपरा को निभाया जाता है। आज भी जब होली का निमंत्रण देकर पांडा बरसाना के प्रमुख श्री जी के मंदिर पहुंचता है, तो यहां मंदिरों में सभी सेवायत एकजुट होकर श्रद्धालुओं पर लड्डू फेंकते हैं।

लठमार होली

मान्यता के अनुसार, लठमार होली की शुरूआत लगभग 5000 साल पहले हुई थी। कहते हैं कि एक बार श्री कृष्ण आपने ग्वाले साथियों के साथ बरसाना राधारानी से मिलने पहुंचे थे। तब श्रीकृष्ण और ग्वालों ने राधारानी और उनकी सखियों को चिढ़ाना और परेशान करना शुरू कर दिया। जिसके कारण राधारानी और उनकी सखियों ने कृष्ण और उनके साथ आए ग्वालों को लाठी लेकर दौड़ाया था। तभी से लठमार होली की शुरूआत हुई। इसी परंपरा के अनुसार, आज भी नंदगांव के युवक होली पर बरसाना जाते हैं और बरसाना की महिलाएं और लड़कियां लाठियों ने उन्हें मारने का प्रयास करती हैं।

फूलों वाली होली

ब्रज में फुलेरा दूज के दिन फूलों वाली होली खेली जाती है। एक बार श्रीकृष्ण अपने काम में इतने व्यस्त हो गए कि वह राधारानी से मिलने नहीं जा पाए। जिस कारण राधारानी उदास हो गईं। राधारानी की उदासी का असर प्रकृति पर भी होने लगा और फूल, पेड़-पौधे आदि सूखने लगे तो श्री कृष्ण को अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद वह राधारानी से मिलने बरसाने पहुंच गए। राधारानी कृष्ण को देखकर खुश हो गईं। जिसपर प्रकृति पहले की तरह हरी-भरी हो गई। राधारानी को खुश देखकर श्री कृष्ण ने उनपर फूल फेंके। जिसके बाद राधारानी और गोपियों ने मिलकर श्री कृष्ण के साथ फूलों वाली होली खेली। आज भी वहां फूलों वाली होली खेली जाती हैं।

[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *