पूर्णिमा पर हुआ संत आत्माराम बाबा मेले का शुभारंभ

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– भक्तों ने ध्वजा अर्पित कर की मनौतियां पूर्ण

नेमावर (संतोष शर्मा)। नर्मदा-जामनेर नदी के संगम स्थल मेलघाट पर स्थित संत आत्माराम बाबा की योग समाधि पर पौष पूर्णिमा के शुभ अवसर पर 15 दिवसीय मेले का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर भक्तों ने ध्वजारोहण कर अपनी आस्था और श्रद्धा प्रकट की।

हर वर्ष लगने वाले इस मेले में आत्माराम पंथी और संत सिंगाजी पंथी भक्त बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इस बार बाबा की समाधि पर ध्वजा अर्पित करने के लिए ऐलवाडा (जिला हरदा), भोपाल, शुजालपुर, खंडवा, हरसूद सहित विभिन्न स्थानों से भक्त एक दिन पूर्व ही ध्वजाएं लेकर पहुंचे। सोमवार को पूर्णिमा की दोपहर में बाबा की चरण पादुका और समाधि स्थल पर महापूजा, ध्वजा पूजन और प्रसाद अर्पण के साथ ध्वजारोहण की परंपरा पूरी की।

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ध्वजा यात्रा- नेमावर नगर परिषद के अध्यक्ष कृष्ण गोपाल अग्रवाल, जनपद उपाध्यक्ष मनीष पटेल, तेजाजी बोर्ड के अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण गौर, उपाध्यक्ष राजपाल तोमर, विनोद हथेल, हायर सेकंडरी स्कूल प्राचार्य राजेंद्र हथेल, भाजपा मंडल अध्यक्ष सचिन मीणा, पूर्व मंडल अध्यक्ष अर्जुन पंवार, पं संतोष शर्मा, पूर्व सरपंच दिग्पाल तोमर सहित सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति में दयालु माता मंदिर बस स्टैंड से बैंड-बाजों के साथ ध्वजा यात्रा निकाली गई। यह शोभायात्रा नगर के मुख्य मार्गों से होते हुए नर्मदा-जामनेर संगम स्थल पहुंची। यहां संत आत्माराम बाबा की समाधि पर श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की और प्रसादी का वितरण किया।

भव्य मेले का पुनः आयोजन- मेले में बच्चों के खिलौनों, खाद्य सामग्री और अन्य वस्तुओं की दुकान श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही है। यह मेला पूर्व में देवास जिले का प्रमुख मेला था, लेकिन लापरवाहियों के चलते लगभग बंद हो गया था। इस वर्ष इसे भव्य रूप में पुनः आरंभ करने का प्रयास किया गया है, जिसमें पहले ही दिन सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। आगामी दिनों में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।

तुलादान और भंडारा- बाबा की समाधि पर भक्तों ने भंडारा आयोजित किया और अपनी मनौतियां पूर्ण होने पर तुलादान किया। तुलादान में गुड़, शक्कर, अनाज, फल और सूखे मेवे अर्पित किए गए। इस मेले के पुनः आरंभ होने से क्षेत्र के गुर्जर, कलोता, यादव, कसेरा, नर्मदेही ब्राह्मण समाज सहित सभी पंथी परंपरा से जुड़े भक्तों में उत्साह है। कभी यह मेला देवास, खंडवा, होशंगाबाद, बैतूल और सीहोर जिलों में प्रसिद्ध था। श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भागीदारी के साथ इस ऐतिहासिक मेले को पुनर्जीवित करने का प्रयास सफल होता दिख रहा है।

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