वर्ष 2000 की बात है। मैं किसी परिचित के घर बैठने गया। उनका बच्चा 7वीं क्लास में पढ़ता था। उसे मालूम था कि कुछ समय पहले मैं कैलाश मानसरोवर यात्रा करके आया हूं। तो वह अपनी स्कूल बुक लेकर आया और बोला “देखिए अंकल कैलाश मानसरोवर के बारे में हमें भी पढ़ाया जाता है।” उसने किताब में वह पृष्ठ खोलकर दिखाया जिसमें कैलाश मानसरोवर वाला पाठ था।
पाठ देखकर मेरा दिमाग घूम गया। पाठ में लिखा था कि मानसरोवर झील के किनारे कैलाश पर्वत है, जिसमें शिवजी का भव्य मंदिर है। जबकि वास्तविकता में कैलाश पर्वत पर कोई मंदिर नहीं है। मैंने बच्चे से कहा कि “इसमें सब गलत लिखा है। कैलाश पर्वत पर कोई मंदिर नहीं है।” बच्चे को विश्वास नहीं हुआ कि किताब में, पाठ में गलत लिखा है।
मैंने बच्चे से एक दिन के लिए वह किताब ली जो शासकीय संस्थान से छपी थी। लेख की फोटोकॉपी कराई और स्कूल तथा शासन को लिखा कि यह क्या गड़बड़ पढ़ाया जा रहा है। साथ में मैंने कैलाश मानसरोवर की फोटो तथा विवरण भी भेजा।
लेकिन जैसा होता है, वह पाठ किताब से नहीं हटा क्योंकि एक सरकारी विद्वान का लिखा हुआ था। (विद्वान दरअसल दो प्रकार के होते हैं, पहले वे जिन्हें शासन विद्वान मानता है, दूसरे वे जिन्हें आम आदमी विद्वान मानता है।) सरकारी विद्वान की सत्ता में पकड़ होती है इसीलिए वह गलत पाठ अगले साल भी स्कूल में पढ़ाया जाता रहा।
अमेरिका जैसे विकसित देशों में मैंने देखा है कि वहां स्कूल-कॉलेजों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती है। वहां धर्म के बारे में कहा जाता है कि यह स्कूल-कॉलेज में पढ़ाने का विषय नहीं। धार्मिक शिक्षा गिरजाघर तथा अन्य धर्म स्थलों पर ही भ्रमण के समय दी जा सकती है। इसीलिए वहां के युवा तथा बच्चे धर्म के बारे में उल्टा-सीधा, आधा-अधूरा ज्ञान नहीं रखते हैं।
दूसरी ओर भारत जैसे देशों में धर्म आधारित शिक्षा ही दी जाती है या कम से कम हर कक्षा में किसी न किसी भगवान या देव स्थान के बारे में पढ़ाया जाता है। यहां तक तो ठीक है लेकिन यह भी कोई देखने वाला नहीं कि धार्मिक ज्ञान भी सही दिया जा रहा है या नहीं।
मुझे स्मरण है कि जब 1998 में मेरा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए चयन हुआ तो भोपाल में अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं था कि कैलाश मानसरोवर कोई तीर्थ स्थल है। कई पढ़े-लिखे लोगों ने तक मुझसे कहा कि “क्या कोई सेमिनार या वर्कशॉप में जा रहे हो।” मैंने बताया भी कि यह हिंदुओं का सबसे पवित्र तीर्थ है लेकिन उन्हें न समझना था और न समझ में आया। मजे की बात यह है कि आज भी कई लोग यह कहते हैं कि अरे आप तो अमरनाथ यात्रा करके आए हैं। उन्हें अमरनाथ यात्रा और कैलाश मानसरोवर यात्रा एक ही लगती है।
यात्रा पूरी कर लौट आने के कुछ दिनों बाद मालपा हादसा हो गया और कैलाश मानसरोवर पर एक माह से अधिक समय तक मीडिया खबरें देता रहा। हादसे में प्रख्यात फिल्म कलाकार कबीर बेदी की पत्नी नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी सहित करीब 300 लोगों की मृत्यु हुई थी। प्रोतिमा बेदी 60 यात्रियों में एक थीं। दुर्घटना में यात्रियों सहित पोर्टर, घोड़े वाले, कुमाऊं विकास मंडल के कर्मचारी मारे गए थे। हादसे के बाद ही मीडिया के माध्यम से ज्यादातर लोगों को कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में जानकारी मिलीं और मेरे पास तब सैकड़ों फोन आए थे कि मैं सुरक्षित आ गया या नहीं।
मेरा मानना है कि स्कूल कॉलेजों में धर्म संबंधी कोई शिक्षा नहीं देनी चाहिए और अगर सरकार को लगता है कि ऐसी शिक्षा दी जानी जरूरी है तो ऐसे विद्वानों से पाठ लिखवाना चाहिए जो वास्तव में विषय के जानकार विद्वान हैं।
जय हिंद
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