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स्वतंत्रता दिवस पर विशेष: देवास में एक फौजी की पार्षद बनने तक की दिलचस्प कहानी

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कभी सीमा पर तैनात रहकर दुश्मनों से लिया लोहा, अब पार्षद बनकर कर रहे सेवा

देवास। राजनीति के साथ समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी मुख्य भूमिका निभा रहे वार्ड 40 के नवनिर्वाचित पार्षद धर्मेंद्रसिंह बैस के बारे में यह कम लोग ही जानते हैं कि इन्होंने कई वर्षों तक देश की सीमा पर तैनात रहकर मातृभूमि की सेवा भी की है। फौजी के रूप में अपना वतन के प्रति फर्ज निभाकर आज एक वार्ड पार्षद के रूप में सेवा दे रहे हैं। बैस मेयर इन काउंसिल के सदस्य भी है।

आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत आज हम एक ऐसे नायक के बारे में चर्चा कर रहे हैं, जिसके लिए सेवा एक जुनून है। छात्र जीवन से ही सेवा का जो सिलसिला चला वह अब भी बरकरार है। छात्र जीवन में एनसीसी ने मन मस्तिष्क पर इनता गहरा असर किया कि 18 साल की उम्र में ही वे फौज में भर्ती हो गए। फौज में भर्ती होने की दिलचस्प कहानी सुनाते हुए धर्मेंद्र कहते हैं कि वर्ष 1990 में देवास के पुलिस लाइन में फौज में भर्ती चल रही थी। मैं अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंच गया और संयोग से मेरा चयन भी हो गया। दोस्तों और परिवार के लोगों ने मेरा पूरा साथ दिया। आखिर मातृभूमि की सेवा का जो मौका है, वह तो तकदीर वालों को ही मिलता है। धर्मेंद्र बैस बताते हैं कि नया जोश, नई उमंग थी और फौज में रहते हुए सीमा पर जाने के विचार से ही मेरा रोमांच बढ़ रहा था। पहली पोस्टिंग के साथ ही देश सेवा और समाजसेवा को मैंने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इस दौरान मैंने पाकिस्तान, भूटान की बार्डर पर ड्यूटी की। पंजाब, जम्मू सहित अलग-अलग सीमा क्षेत्रों में तैनाती रही। मैं आज भी जब फौज में बिताए दिनों को याद करता हूं तो गर्व से मेरा सीना चौड़ा हो जाता है। अफसोस भी है कि मुझे पारिवारिक कुछ जिम्मेदारी के चलते 1996-97 में वापस अपने गांव लौटना पड़ा। मैंने सेवा का जो संकल्प फौज में लिया था, उसे आज भी हर संभव पूरा कर रहा हूं।

संघर्ष के दिनों में टेम्पो भी चलाया-

अपने संघर्ष के दिनों के बारे में बताते हुए धर्मेंद्र कहते हैं कि गुजर-बसर के लिए मैंने वर्ष 1998 में टेम्पो भी चलाया। मैंने संघ की शाखा और सेना में रहकर अनुशासन सीखा और यह समाजसेवा व राजनीति में भी महत्वपूर्ण है। कोई भी काम छोटा नहीं होता आपकी लगन और निष्ठा ही काम को बड़ा बनाकर आपको कामयाब बनाती है।

संघ की शाखा में मिली सीख-

धर्मेंद्र बताते हैं कि मैं 8-9 साल की उम्र से ही संघ की शाखा में जाता था। शाखा के माध्यम से समाज के हर वर्ग की सेवा की सीख मिली। वर्ष 1998 में ही मुझे हिंदू जागरण मंच का नगर संयोजक बनाया गया, जिसमें आज भी मैं हूं। वर्ष 2007 में भाजपा के नगर महामंत्री का दायित्व मिला, जो अब तक है। संगठन के प्रति सेवा को देखते हुए वर्ष 2004 में धर्मपत्नी को भाजपा से टिकट मिला और पार्षद के रूप में चुनी गई। इस बार नगर निगम चुनाव में धर्मेंद्र बैस स्वयं वार्ड 40 से पार्षद चुने गए। कहने के लिए वो इस वार्ड के नहीं है, लेकिन उनके पूरे शहर में सेवा कार्यों को देखते हुए जनता ने जीत के रूप में अपार स्नेह दिया।

हर समस्या को दूर करना है-

वार्ड 40 की जनता का जो वोट के रूप में जो कर्ज है, उसे चुकता करने में धर्मेंद्र बैस तत्परता से जुटे हैं। वे कहते हैं कि वार्डवासियों ने मुझे चुना है और अब मेरा फर्ज है कि मैं इस बड़े वार्ड की छोटी से छोटी समस्या दूर करूं। यहां ड्रेनेज की समस्या है, जिसका निराकरण पूरी तरह से करना है। बाजार में सुलभ कॉम्प्लेक्स बनवाने हैं। संजीवनी क्लीनिक खोलना है। शांतिपुरा क्षेत्र में पुलिस चौकी खुलवाना है और भी कई काम है, जो समय के साथ करवाना है।

-पिछले 8 सालों से नि:शुल्क शव वाहन का संचालन कर रहे हैं।

-मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए नि:शुल्क एंबुलेंस का संचालन कर रहे हैं।

-हर वर्ष मकर संक्रांति पर पतंग वितरण, गणेशोत्सव के दौरान मूर्ति वितरण जैसे कार्य भी करते हैं।

-दशहरे के दूसरे दिन हिंदू जागरण मंच के माध्यम से आतिशबाजी के साथ रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन करते हैं।

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