वर्तमान में कुछ वर्षों से विदेश विभाग भारत सरकार द्वारा हर वर्ष आयोजित होने वाली कैलास मानसरोवर की यात्रा बंद है।
मैं भाग्यशाली था और इसे मैं ईश्वरीय कृपा ही अपने ऊपर मानूंगा कि मुझे दो बार कैलास मानसरोवर यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि मेरे से पूर्व राजनेतागण आदरणीय सुब्रमण्यम स्वामी तथा तरुण विजय जी ने यह यात्रा निर्विघ्न पूर्ण की थी।
यहां मैं यात्रा वृत्तांत नहीं अपितु उस घटना का जिक्र करूंगा जिसमें मालपा हादसे के अंतर्गत करीब 300 लोगों की जानें गईं थीं।
पहली बार वर्ष 1998 में विदेश मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयोजित कैलास मानसरोवर यात्रा के पांचवें बैच में मैं यात्रा को रवाना हुआ था।
यात्रियों के आठवें बैच में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के बेटे (नाम संभवतः विशाल है) सुरक्षा के लाव-लश्कर के साथ थे। बारहवें बैच में अंतरराष्ट्रीय स्तर के अभिनेता कबीर बेदी की पत्नी नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी थीं।
कैलास मानसरोवर यात्रा में आमतौर पर छोटे छोटे हादसे होते ही रहते हैं। कभी लौटते में कैंप ही लापता मिलता है तो कभी किसी यात्री की दुर्घटनावश मृत्यु हो जाया करती है, लेकिन ऐसे कारणों के चलते यात्रा रोकी नहीं जाती थी।
1998 में भी ऐसा ही हुआ। मेरा बैच यात्रा पूरी कर लौट चुका था कि कुछ ही दिन बाद मालपा हादसे की खबर मिली।
मेरे पास सभी बैचेस् का डिटेल प्रोग्राम भी था। हुआ यूं था कि आठवें बैच में विशाल गुजराल जी के एक साथी का पैर फिसल गया और वह करीब 100 मीटर गहरी खाई में गिर कर खत्म हो गया। आम तौर पर ऐसी घटना होने पर भी यात्रा यथावत जारी रहती है। लेकिन चूंकि मृतक मोस्ट वीआईपी विशाल गुजराल जी का मित्र था अतः सब तरफ़ खबर फैला दी गई कि जो जहां है वही रुक जाए।
बारहवां बैच मालपा से रवाना होकर अगले कैंप अर्थात गाला कैंप पहुंचने को ही था। लेकिन निर्देशानुसार उन्हें कहा गया कि अपने कैंप मालपा में ही वापस लौट जाएं। मालपा से गाला की 90% दूरी पार करने के बाद भी उन्हें मालपा कैंप में ही वापस भेज दिया गया।
रात में भूस्खलन हुआ और मालपा कैंप पूरा तबाह हो गया। 60 यात्रियों सहित करीब 300 लोग दबकर खत्म हो गए। केवल एक लोकल डाक्टर बच पाया जो मालपा से 3 किलोमीटर दूर एक डाक बंगले में रुका हुआ था। उसी ने पूरी दुनिया को इस हादसे की खबर दी। हादसा 14-15 अगस्त की दरमियानी रात में हुआ था। लगातार 1 माह से अधिक समय की खोजबीन के बाद भी दुर्भाग्य से किसी का शव तक नहीं मिला।
यह हादसा केवल इस कारण हुआ था क्योंकि विशाल गुजराल के साथी की मृत्यु के कारण गलत निर्णय लेते हुए सभी दलों को जो जहाँ है वहीं रोक दिया गया।
अगर ऐसा नहीं किया जाता तो किसी यात्री की मृत्यु होती ही नहीं क्योंकि निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 14-15 अगस्त की दरमियानी रात में मालपा कैंप में किसी बैच को नहीं रुकना था।
काश कि वीआईपी कल्चर को ध्यान में रख उस समय ऐसा कोई गलत निर्णय लिया ही नहीं जाता तो आज वे सभी संभवतः जीवित ही होते।
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