बच्चों की पढ़ाई को लेकर विद्यालय में शिक्षकों, पालकों के अपने-अपने दृष्टिकोण होते हैं। विद्यालय में बच्चे का प्रवेश इस उम्मीद पर करवाया जाता है, कि वह अच्छी से अच्छी शिक्षा ग्रहण करेगा और श्रेष्ठ नागरिक बनेगा।
इसी उद्देश्य के लिए बच्चा, उसका परिवार और शिक्षक सभी मिल जुलकर सामूहिक प्रयास करते हैं और निश्चित उद्देश्य की तरफ बढ़ते हैं, लेकिन कई बार देखने में आता है कि बच्चा नियमित रूप से स्कूल नहीं आता और उनके माता-पिता की भी उस पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं होती। ऐसी स्थिति में कुछ शिक्षकों का यह दृष्टिकोण होता है, कि जब उनके माता-पिता को ही अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता नहीं है तो हम क्या करें?
यह मानसिक स्थिति शिक्षक को अपने कर्तव्य से विमुख करती है, लेकिन जब हम विचार करते हैं कि शिक्षक का नैतिक दायित्व इससे कहीं अधिक है और उसका दायरा भी बहुत बड़ा है तो शिक्षक को यह दृष्टिकोण रखना चाहिए कि यदि बच्चों के माता-पिता कुछ नहीं कर रहे हैं तो हम ही कुछ करें। नैतिक दायित्व का पालन हमें उन बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा देता है, जो नियमित रूप से स्कूल नहीं आते। जब शिक्षक अपने मन में दृढ़ संकल्प करता है कि वह उन बच्चों के लिए कार्य करेगा तो उसके परिणाम भी बहुत अच्छे आते हैं। जहां चाह है वहां राह है। इसके लिए हमें बस मन में यह संकल्प करना होता है कि हम जो भी कर रहे हैं वह अच्छे परिणाम के लिए कर रहे हैं और यकीन मानिए उसका परिणाम बेहतर ही आता है। मैंने अपने शासकीय विद्यालय महाकाल कॉलोनी में दृढ़ संकल्प से कार्य शुरू किया और स्टाफ सदस्य, हमारे सभी वरिष्ठ अधिकारी, समाजसेवी, विभिन्न निजी संस्थाबके सामूहिक सहयोग से बहुत सारी उपलब्धियां हासिल हुई। हमें सकारात्मक विचार रखकर आगे बढ़ना चाहिए, सहयोग जरूर मिलता है और परिणाम भी अच्छे आते हैं। सकारात्मक प्रेरणा से हम उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
महेश सोनी, प्रधानाध्यापक (राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त शिक्षक), शासकीय माध्यमिक विद्यालय महाकाल कॉलोनी, देवास
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