साहित्य

समझौते से बेहतर है सामंजस्य

सामंजस्य और समाधान कर स्वयं काे और अपनो को रखिएं खुश

जीवन में हमें कई परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और उनके निराकरण के लिए हम या तो समझौता करते हैं या फिर सामंजस्य बिठाते हैं। दोनों में बहुत फर्क है, जब हम किसी परिस्थिति से समझौता करते हैं तो उसमें एक पक्ष को पूरा न्याय नहीं मिल पाता।

समझौता दोनों पक्षों को संतुष्ट नहीं कर पाता। एक पक्ष हमेशा असंतुष्ट बना रहता है और वही फिर दुख का कारण भी बनता है, लेकिन हम यदि समझौते के बजाए परिस्थिति से सामंजस्य बिठाकर उसका निराकरण करें तो दोनों पक्ष इसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। सामंजस्य में एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करके समस्या का समाधान किया जाता है जो दोनों पक्षों को पूर्ण संतुष्ट करता है। इसलिए जब भी परिवार में, समाज में या अन्य कई स्थानों पर हमें विकट परिस्थिति का सामना करना पड़े तो समझौते के बजाय सामंजस्य बिठाना ज्यादा उचित होता है।

इसी प्रकार जब कोई विवाद होता है तो उसका निर्णय किया जाता है जबकि निर्णय के बजाय उसका समाधान किया जाना चाहिए। निर्णय में भी एक पक्ष हमेशा असंतुष्ट रहता है। जबकि समाधान में दोनों पक्ष पूर्ण संतुष्ट हो जाते हैं। अतः बेहतर जीवन के लिए सामंजस्य और समाधान का उपयोग कीजिएं और स्वयं को और अपनों को खुश रखिए यह आपका कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी।

– महेश सोनी

प्रधान अध्यापक

शासकीय माध्यमिक विद्यालय महाकाल कॉलोनी देवास।

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