,

भारतीय सनातन संस्कृति का संजा पर्व, गाय के गोबर से आकृतियां बनाती हैं बेटियां

Posted by

Share

सुंद्रेल-बिजवाड़ (दिनेशचंद्र पंचोली)।आज भी गांवों में सनातन परंपरा जीवंत है। परिस्थितियां चाहे जो भी हो, लेकिन आज भी सनातन परंपरा को मानने वाले लोग हर त्योहार को मनाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इसीलिए आज भी पूरे वर्ष पचासों त्यौहार बड़ी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। संजा पर्व सदियों से मनाने के लिए हमारे देश की छोटी-छोटी कुंवारी बालिकाएं माता संजा को प्रसन्न करने के लिए 16 दिन विभिन्न आकृतियों के माध्यम से गाय के गोबर से अपने घर की दीवार पर चित्र बनाकर सांयकाल में आरती उतारकर अनेक भजनों से माता पार्वती और शंकर को प्रसन्न कर अपने जीवन को धन्य बनाकर अपने अच्छे गृहस्थ जीवन के लिए वर मांगती है। गांवों में जब छोटी-छोटी बालिकाएं मिट्टी के दीपक थाली में रखकर आरती के साथ भजन गाती है तो उन भजनों को सैकड़ों लोग बड़ी श्रद्धा से सुनते हैं। ऐसा बताया गया है कि संजा भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री थी। ससुराल वालों ने उसके साथ अन्याय किया था, तब से ही यह पर्व श्राद्ध पक्ष में एकम से लेकर अमावस तक मनाया जाता है। अंतिम दिवस 16 दिनों तक बनाई गई आकृतियों को बड़ी श्रद्धा और भाव के साथ कन्याएं उत्सव मनाकर जलाशय आदि स्थानों पर भावभीनी बिदाई देती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *