आज रात 12 बजे खुलेंगे नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट

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नागचंद्रेश्वर

(विजेंद्रसिंह ठाकुर रिपोर्ट 9302222022)

उज्जैन। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के शिखर पर नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी पर ही खोले जाते हैं। अब से कुछ देर बाद रात 12 बजे नागपंचमी पर पट खोले जाएंगे।

बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए उत्सुक हैं। ये दर्शन का क्रम शुक्रवार रात 12 बजे तक सतत चलता रहेगा। महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष व कलेक्टर नीरजकुमार सिंह के अनुसार नागचंद्रेश्वर और महाकाल के दर्शन के लिए अलग-अलग मार्ग तय किए हैं। त्रिवेणी संग्रहालय से 40 मिनट में महाकाल के दर्शन किए जा सकेंगे।

मंदिर में 11वीं शताब्दी की है प्रतिमा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर है। उसके शीर्ष पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक प्रतिमा स्थापित है। इसमें नागचंद्रेश्वर सात फनों से सुशोभित हैं। साथ में शिव-पार्वती के दोनों वाहन नंदी और सिंह भी विराजित हैं। यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। मान्यता है कि उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।

महाकालेश्वर और नागचंद्रेश्वर की खास बातें-
नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा दुर्लभ है और 11वीं शताब्दी की मानी जाती है। नागचंद्रेश्वर की मूर्ति में फन फैलाए हुए नाग देव हैं। नाग शय्या पर शिव-पार्वती विराजित हैं। इस मूर्ति एक शिव जी के साकार स्वरूप के दर्शन होते हैं। भगवान विष्णु की तरह ही शिव जी इस प्रतिमा पर नाग शय्या पर विराजमान हैं।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। दक्षिणमुखी होने की वजह से महाकाल के दर्शन से असमय मृत्यु के भय और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। भगवान महाकाल की रोज सुबह भस्म आरती की जाती है।

पुराने समय में महाकालेश्वर मंदिर क्षेत्र को महाकाल वन के नाम से जाना जाता था। स्कंद पुराण के अवंती खंड, शिवमहापुराण, मत्स्य पुराण आदि ग्रंथों में महाकाल वन का जिक्र है।

पौराणिक कथा के मुताबिक उज्जैन क्षेत्र में दूषण नाम के दैत्य को मारने के लिए शिव जी प्रकट हुए थे। इस जगह को धरती का नाभिस्थल भी कहते हैं। यहां से कर्क रेखा भी निकलती है। महाकालेश्वर शिवलिंग में भगवान ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं, इस कारण इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।

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