पैसा तो खूब कमाया, लेकिन रामनाम रूपी धन नहीं कमाया तो सब व्यर्थ

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गुजरात के सोमनाथ में चल रही श्रीमद भागवत कथा में पं. तिवारी ने दिए प्रेरणादायी संदेश

सुंद्रैल-बिजवाड़ (दिनेशचंद्र पंचोली)। इस संसार में राम का नाम ही सबसे बड़ा धन है, बाकि सब व्यर्थ है। जिसने रामनाम रूपी धन कमा लिया समझो उसने संसार को जीत लिया। जिसने खूब मेहनत करके रुपया तो कमा लिया, लेकिन रामनाम रूपी धन नहीं कमाया उसका जीवन भी व्यर्थ है। उक्त प्रसंग सोमनाथ गुुजरात में चल रही महाशिवपुराण कथा के चौथे दिवस भागवताचार्य पं. पुष्पानंद तिवारी कांटाफोड़ ने सुनाया। आपने आगे कहा कि समय रहते राम का नाम ले लों, वरना जब बुढ़ापा आ जाता है, उस समय आपकी जबान भी नहीं हिलेगी। साधना में अौर भगवान का नाम लेने में समझदार को कभी भी बुढ़ापे का इंतजार नहीं करना चाहिए। जवानी में ही भगवान का भजन करलों। तीर्थ भी जवानी में कर लेना चाहिए। बुढ़ापे में जब शरीर काम नहीं करता है, उस समय तीर्थ नहीं किया जा सकता, इसलिए जीवन में सभी पुण्य कार्य जवानी में ही कर लेना समझदारी है। उन्होंने कहा कि सावन मास में कमल पुष्प, चावल, दूध, दही, घी, तिल, बिल्वपत्र आदि 108 पदार्थों से भगवान का अभिषेक किया जाता है। इससे समस्त मनोकामना के साथ सभी प्रकार के मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्र और हमारी सनातन परंपरा यह सिखाती है कि मस्तक पर प्रतिदिन तिलक लगाना चाहिए, लेकिन आज सनातन संस्कृति को मानने वाले लोग सब भूल गए हैं। एक समय था जब हमारे समाज में सनातन परंपरा को मानने वाले घरों में प्रतिदिन हवन होने के बाद ही भोजन बनता था। पहले अतिथि को, गाय को भोजन कराने के बाद ही भोजन किया जाता था, लेकिन आज घरों में हमारे बच्चे सिर्फ और सिर्फ मोबाइल के अलावा सब भूल गए हैं। मोबाइल में गंदे चित्र देखकर हमारी युवा पीढ़ी गलत रास्ते पर जा रही है। युवाओं का भविष्य चौपट हो रहा है। यह जो हो रहा है, एक साजिश के तहत हो रहा है, जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं। परिवार में हमारे बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए यदि हमने संकल्प नहीं लिया तो बहुत जल्दी ही हमारी भारतीय संस्कृति की यह परंपरा खत्म होकर गर्त में चली जाएगी। फैशन के इस दौर में हमारी संस्कृति को खतरा पैदा हो गया है। इस दौर को समझने की आवश्यकता है। वरना सब कुछ खत्म हो जाएगा। कथा संयोजक रवि नागर और गिरधर गोपाल नागर ने व्यासपीठ का सपत्नीक पूजन कर आशीर्वाद लिया।

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