देवास। दया ही सत्य सनातन धर्म का मूल आधार है। इसमें जीव मात्र के प्रति दया भावना समाहित है और यही सनातन धर्म की श्रेष्ठता है। जाति कर्म की होती है, जीव की नहीं, शरीर की नहीं, जिसे जाना-पहचाना जाए उसे जाति कहते हैं। श्वास ही गुरु और श्वास ही परमात्मा है। जिसमें श्वास आती-जाती नहीं है, वह मुर्दा है, क्योंकि मुर्दे में श्वास ना तो आती है और ना ही जाती है। यह शरीर पैदा होता है और फिर मर जाता है। शरीर की यात्रा पूरी करके जीव वापस अन्य देह में आ जाता है।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने कबीर प्रार्थना स्थली पर उज्जैन में आयोजित कबीर महाकुंभ में शामिल होने के पूर्व आयोजित गुरु शिष्य संवाद में व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि काहू का न करो निरादर, सब कोई ओढ़े मेरी चादर। जीवन में किसी का भी अनादर, निरादर नहीं करना चाहिए। सभी ने परमात्मा रूपी चादर ओढ़ी हुई है। जो शब्द ज्ञान देगा, वह शरीर के रोम-रोम को प्रफुल्लित कर देगा। उन्होंने कहा हम पिछली बातों को लेकर लड़ते-झगड़ते रहते हैं, जो मिथ्या है। जिसने वर्तमान को जी लिया वही सत्य है। पिछली बातों से तो बिगड़ना ही है। करिएं नित सतसंगत को बाधा सकल नसाय। कला, काल और कल्पना सतसंगत से जाय। प्रत्येक मानव सत्य की संगति करें। इस अवसर पर सदगुरु कबीर के अनुयायियों, साध संगत द्वारा सद्गुरु मंगल नाम साहेब का पुष्माला पहनाकर श्रीफल भेंट कर सम्मान किया गया।
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