Vanopaj वन आधारित उपज आदिवासी परिवारों को प्रदान कर रही आर्थिक संबल

Posted by

– गांव हुए सुने, महुए के पेड़ के नीचे डाला डेरा
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)।
लघु वनोपज में शामिल महुए की फसल वर्तमान में फूल बनकर पक कर तैयार है। आसपास के कई क्षेत्र में महुए के पेड़ फल से लदे हुए हैं। ये महुए आदिवासी परिवारों को आर्थिक संबल प्रदान कर रहे हैं। मजदूर दिनभर महुए को बीनकर एक जगह पर एकत्रित कर रहे हैं।
अधिकतर महुए के पेड़ वन भूमि अंतर्गत है। इसके लिए मजदूर परिवार जो हमेशा से महुए फूल बीनने का काम करते हैं, वह वर्तमान में अपना डेरा जंगल में ही लगाए हुए बैठे हैं। परंपरागत रूप से महुए के वृक्षों को बीट एवं कक्ष क्रमांक के आधार पर बांटा गया है। इसके चलते कोई किसी के पेड़ के फल में हस्तक्षेप नहीं करता। जिनके हिस्से में जितने पेड़ आते हैं, वह उसी पेड़ से गिरे हुए महुए फूल लेते या चुनते हैं। इस कार्य में अधिकतर आदिवासी परिवार ही लगे हुए हैं, जिनका जीवन ही वनों पर आधारित है। आसानी से जंगलों में रात गुजार कर प्रति परिवार 3 से 4 क्विंटल महुआ फूल एकत्रित कर लेते हैं। महुए फल बाजार में बेचने के बजाए आदिवासी परिवार स्वयं सीमित रूप में शराब बनाने के लिए घर पर ही संग्रहित करते हैं। विशेष अवसर पर इस महुए फूल की शराब बनाकर कम खर्च में अपना उत्सव मना लेते हैं। यह शराब देसी पद्धति से बनाई जाती है। हालांकि कुछ परिवार इस शराब के तरीके को व्यवसाय में भी शामिल कर लेते हैं।

वर्तमान में महुए फूल गीली अवस्था में 20 से 22 रु. प्रति किलो बिक रहा है। सूखने पर 30 से 40 रुपए किलो खरीदी-बिक्री होती है। वनोपज में शामिल यह फल बगैर लाइसेंस के अधिक मात्रा में खरीदना एवं संग्रहित करना प्रतिबंधित है, फिर भी अधिकतर परिवार इसका सदुपयोग करना जानते हैं। बेहरी क्षेत्र के रामपुरा, गवाडी, कामठ, अंबानी, शिवन्या, बढ़पुरा आदि मजरा टोला वर्तमान में परिवार सहित जंगल में महुए फल एकत्रित करने गए हुए हैं और गांव विरान बने हुए हैं।
भील समाज से जुड़े सुरेश भायेल बताते हैं, कि उनके परिवार में हजारों वर्षों से महुआ फूल के जरिए शराब बनाई जाती है, लेकिन कालांतर में शासकीय प्रतिबंध के चलते आदिवासी परिवार भी अन्य शराब का उपयोग करते हैं। शराब बनाने की छूट सीमा बढ़ा दी जाए तो अतिरिक्त खर्च के साथ-साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह कदम लाभदायक हो सकता है। दुखद पहलू यह है, कि घर पर यदि शराब बनती है तो इसकी आदत लग जाती है और अधिक मात्रा में पीने के चलते कई परिवार बर्बाद भी होते हैं।

महुए के व्यापारी दयाराम मंडलोई बताते हैं, कि जो परिवार आर्थिक दृष्टि से महुए फूल एकत्रित करते हैं, वह बाजार में महुए फूल बेचने आते हैं। 15 दिनों से यह बिक्री एवं खरीदी शुरू हो चुकी है।

“कांटाफोड़, सतवास, उदयनगर क्षेत्र में समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाती है, क्योंकि उधर महुए के पेड़ की संख्या अधिक है। बागली वन परिक्षेत्र में महुए की पेड़ों की संख्या कम है। इसके बावजूद अगर कोई बेचना चाहता है तो वनोपज समिति के माध्यम से बेच सकता है” – अमित सोलंकी अनुविभागीय अधिकारी वन परिक्षेत्र बागली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *