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पुणे: राज्य के अधिकांश महानगरपालिका (Municipal Corporation), जिला परिषद (Zila Parishad), पंचायत समिति का होने वाला चुनाव का इंतजार और लंबा होने आशंका कसबा उपचुनाव के रिजल्ट (Kasba By-Poll Results) के बाद व्यक्त की जा रही है। बीजेपी (BJP) का गढ़ माना जाने वाले कसबा सीट पर भारतीय जनता पार्टी की अनपेक्षित रुप से हार हुई है। इस हार के बाद राज्य की सत्ता में बैठी सरकार आगामी चुनावों को लंबा खींच सकती है। ऐसी तस्वीर नजर आने लगी हैं।
राज्य की अधिकांश महानगरपालिकाओं और जिला परिषद में पिछले एक से तीन वर्षों से प्रशासक राज चल रहा है। इन स्थानीय स्वराज संस्थाओं की अवधि समाप्त होने, आरक्षण, कोर्ट की सुनवाई आदि को आगे बढ़ाकर चुनाव नहीं हो, ऐसी व्यवस्था उस वक्त सत्ताधारियों ने की थी, लेकिन शिंदे-फडणवीस सरकार के सत्ता में आने के बाद यह चुनाव कराने को लेकर हलचल शुरू हुई। यह करते वक्त कोर्ट की प्रक्रिया से कैसे रास्ता निकाला जा सकता है, इस पर भी समय समय पर विचार किया जा रहा था, लेकिन उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करने के बाद उनके प्रति आम जनता में सहानूभुति होने की स्थिति को भांप कर स्थानीय स्वराज संस्था का चुनाव का मुद्दा पीछे धकेल दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ है कि सहानुभूति के मुद्दे को कैश करने के लिए अंधेरी उपचुनाव लड़ने का फैसला किया गया। इसी के तहत भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे, लेकिन राज ठाकरे सहित अन्य कई लोगों द्वारा सहानुभूति का मुद्दा ध्यान में लाए जाने के बाद सत्ताधारी ने इस चुनाव से सम्मानजनक रुप से अपने कदम पीछे खींच लिए। इसकी वजह से सत्ताधारी और विरोधियों के बीच का लिटमस टेस्ट टल गया।
बीजेपी को लगा यहां झटका
अंधेरी के बाद विधान परिषद का चुनाव, नागपुर और अमरावती जैसे गढ़ में भाजपा को झटका लगा। इसके बावजूद उन्होंने इसे आम नहीं, बल्कि विशिष्ट वर्ग (डिग्रीधारी, शिक्षक) का चुनाव बताकर मौजूदा शिंदे-फडणवीस सरकार ने स्थानीय स्वराज संस्था का चुनाव कराने की तैयारी शुरू कर दी थी। इसी दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक के बाद एक हुए दो मुंबई दौरे को देखा जा रहा है। इसके अलावा गृहमंत्री अमित शाह की छह महीने पहले स्थगित हुआ पुणे दौरा हाल ही में पूरा हुआ है। मोदी शाह के दौरे के दौरान महानगरपालिका, जिला परिषद के चुनाव की तैयारी देखने को मिली।
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कसबा उपचुनाव से बजी खतरे की घंटी
इस दौरे के सम्पन्न होते-होते शिवसेना का धनुष-बाण चिन्ह शिंदे गुट को देने का निर्णय केंद्रीय चुनाव आयोग ने लिया। इस वजह से अब चुनाव होने की पूरी संभावना बन गई थी। इसी के मद्देनजर अप्रैल, मई महीने में चुनाव होने की संभावना जताई जाने लगी थी। लेकिन कसबा विधानसभा चुनाव परिणाम ने एक बार फिर से इन चुनावों के लिए खतरे की घंटी की तरह नजर आ रही है। एक विधानसभा सीट के लिए खुद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ आधे मंत्री, 10 से 15 दिनों तक पुणे में ताल ठोककर बैठे थे। उनकी देखरेख में सारी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया गया।
शिंदे-फडणवीस सरकार का प्लॉन फेल
कसबा जीत कर आम मतदाताओं के शिंदे-फडणवीस सरकार के साथ होने का पूरे राज्य में नेरेटिव फैलाने का प्लान फेल हो गया है। अब महानगरपालिका, जिला परिषद का चुनाव तुरंत नहीं कराया जाएगा। यह संभावना जताई जा रही हैं। कसबा चुनाव के बहाने राज्य के आम मतदाता के साथ होने का नेरेटिव तैयार करने में असफल होने के कारण सत्ताधारी चुनाव को दिवाली तक ले जाएंगे। ऐसी जानकारी आघाड़ी के एक सीनियर पदाधिकारी ने दी है।
कसबा में बीजेपी के नए रुप को जनता ने नकारा
कसबा विधानसभा क्षेत्र का प्रभाग-15 बीजेपी का गढ़ माना जाता है। सदाशिव, नारायण, शनिवार पेठ में मतदाताओं का बीजेपी से किनारा कर लेने का मतलब यह है कि बीजेपी का नया रूप मतदाताओं को रास नहीं आया है। यही बात राज्य के अन्य क्षेत्र में भी उभर कर आने का डर, इस परिणाम के बाद बीजेपी नेताओं को सताने लगा है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री शिंदे वोट कैचर साबित नहीं हुए है, यह भी डर सताने लगा हैं।
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