– एक बार लगाने पर तीन साल तक होता है उत्पादन
– परंपरागत फसल की तुलना में अधिक मिल रहे भाव
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। कुछ वर्षों से गन्ने की पैदावरी को लेकर किसानों में जागरूकता आ रही है। गन्ने की बढ़ती मांग के अनुरूप आवक नहीं होने से भाव लगातार बढ़ रहे हैं। गन्ने के बढ़ते भाव किसानों को गन्ने की खेती की ओर आकर्षित कर रहे हैं।
परंपरागत खेती की तुलना में गन्ने में लागत कम लगती है और एक बार फसल लगाने पर निरंतर तीन वर्ष तक उत्पादन होता है। इस बार क्षेत्र के लगभग 10 बीघा में गन्ने की खेती हाे रही है।
यूं तो क्षेत्र में सोयाबीन, चना, लहसुन-प्याज आदि फसलों की ही किसान बोवनी करते हैं, लेकिन कई बार इनमें घाटा भी झेलना पड़ता है। सोयाबीन एक बीघा में औसतन चार-पांच क्विंटल ही होती है और भाव भी औसत रूप से 5 हजार रुपए क्विंटल है। जबकि गन्ना की खेती में किसानों को भाव अधिक मिलने पर अच्छी आय हो रही है। खैरची में ही गन्ना प्रति नग 30-40 रुपए में बिक रहा है। थौक में गन्ने के भाव 1200 रुपए क्विंटल मिल रहे हैं। दीपावली व देवउठनी ग्यारस पर पूजन के लिए क्षेत्र से बड़ी मात्रा में गन्ना आसपास के गांवों व शहरों में पहुंचाया गया।
गन्ना उत्पादक किसानों ने बताया कि एक बीघा में लगभग 150 क्विंटल तक गन्ना उत्पादित होता है। ऐसे में सोयाबीन व अन्य उपज की तुलना में गन्ना उत्पादन किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है। गन्ने की खेती में पानी अधिक लगता है, ऐसे में जिन किसानों के यहां सिंचाई की सुविधा है वे गन्ने की खेती कर सकते हैं।
एक बीघा में 25 क्विंटल तक गुड़-
किसान प्रहलाद गिर गोस्वामी, सूरजसिंह पाटीदार व रामप्रसाद पाटीदार ने बताया एक बीघे के गन्ने से गुड़ बनाते हैं। एक बीघा के गन्ने से लगभग 25 क्विंटल तक गुड़ बन जाता है। एक बीघा में गन्ने का वजन लगभग 150 क्विंटल तक होता है। आज गन्ना उत्पादन फायदे का सौदा बन गया है।
किसानों ने बताया कि अगर गन्ना बड़ी संख्या में किसान लगा ले, लेकिन आसपास गन्ने के बड़े खरीददार नहीं है। शुगर फैक्ट्री नहीं होने से गन्ने को बेचने में समस्या होती है। वैसे अधिकतर किसान गन्ने के रस से गुड़ बनाकर बेचते हैं। इन दिनों स्थानीय मधुशालाओं में भी गन्ने की खूब मांग है। गर्मी के दिनों में गन्ना और अधिक महंगा बिकता है।
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