धन्वन्तरि जयंती पर विशेष: आयुष विंग के छोटे से परिसर में है सेहत का खजाना

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Dewas news

– सैकड़ों तरह की जड़ी-बूटियों के लहलहा रहे हैं पौधे

– आयुर्वेदिक औषधियों से सेहतमंद हो रहे मरीज, मुफ्त में होता है पंचकर्म

देवास। समय के साथ प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर लोगों का विश्वास बढ़ रहा है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से उपचार के लिए बड़ी संख्या में मरीज आयुर्वेदिक औषधालय पहुंच रहे हैं। शहर से करीब 10 किमी दूर शिप्रा गांव में स्थित आयुष विंग (आयुर्वेदिक औषधालय) कम संसाधनों में भी मरीजों के सफल उपचार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां महंगी पंचकर्म की सुविधा मरीजों को बगैर किसी शुल्क के उपलब्ध करवाई जा रही है। इस आयुर्वेदिक औषधालय के परिसर में ही औषधीय पौधों की वाटिका हर किसी को आकर्षित करती है।

यहां विभिन्न व्याधियों से ग्रसित मरीज उपचार के लिए आ रहे हैं। इनमें कई मरीज ऐसे भी हैं, जिन्होंने ऐलोपैथिक पद्धति से उपचार लिया, लेकिन पूर्ण रूप से स्वस्थ्य नहीं हुए और अब आयुर्वेद का सहारा ले रहे हैं। यहां के आयुष विंग में आवश्यकता होने पर पंचकर्म पद्धति से भी मरीज का उपचार किया जा रहा है। पंचकर्म में उपयोग आने वाली कई तरह की औषधियां परिसर में लगी औषधीय वाटिका से ही प्राप्त की जा रही है। पंचकर्म में स्नेहन, स्वेदन, कटिबस्ति, नस्यकर्म, शिरोधारा जैसी सुविधाएं यहां उपलब्ध है। व्यक्ति बीमार ही ना हो इसके लिए आयुष केंद्र में समय-समय पर योग की क्लास भी संचालित हो रही है। आयुष केंद्र में मरीजों को चिकित्सकीय परामर्श के साथ दवाइयां निशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। बीमारी में राहत मिलने पर मरीजों का आयुर्वेद पर विश्वास बढ़ रहा है।

आयुष विंग के प्रभारी डॉ. सुभाष भार्गव का कहना है आयुर्वेद का उद्देश्य है व्यक्ति को व्याधि ही ना हो। आहार, दिनचर्या संतुलित होगी तो बीमारियां नहीं आएगी। इम्यूनिटी मजबूत करने के लिए कई प्रकार की औषधियां है, जिनका सेवन किया जा सकता है। हमने परिसर में ही कई प्रकार के औषधीय पौधे लगाए हैं, जिनका उपयोग पंचकर्म में भी करते हैं।

आकर्षण का केंद्र है औषधीय वाटिका-

आयुष केंद्र के एक छोटे से हिस्से में बड़ी संख्या में औषधीय पौधे लगे हैं। ऐसे औषधीय पौधे भी हैं जो स्थानीय जलवायु में आमतौर पर पनपते नहीं है, लेकिन यहां उचित देखरेख से ये पौधे लहलहा रहे हैं। अश्वगंधा, स्नोही, कंटकारी, एरंड, अड़ूसा, नागदोन, आंवला, भूमि आंवला, आम, जामुन, सीताफल, अंजीर, ऐलोवेरा, नीम, गिलोय, मीठी नीम, पान, हल्दी, अदरक, निरगुंडी, शतावरी, हार सिंगार सहित सैकड़ों पौधे औषधीय वाटिका में फलफूल रहे हैं।

औषधीय पौधों का ऐसे करते हैं उपयोग-

आयुष केंद्र के प्रभारी डॉ. सुभाष भार्गव के अनुसार हमारी वाटिका में अश्वगंधा का पौधा है जो, दुर्बलता को दूर करता है। स्नोही का पौधा बहुत कम स्थानों पर पनपता है। इसका दूध विरेचन में काम आता है। इसके दूध से क्षारसूत्र का निर्माण किया जाता है, जो पाइल्स के ऑपरेशन में काम आता है। एरंड वातशामक होता है। कंटकारी, जो खांसी को दूर करने के लिए काम लाई जाती है। कंटकारी का अवलेह बनता है। अड़ूसा या वासा इसका उपयोग श्वांस रोग, खांसी, बुखार आदि में होता है। इसका वासा अवलेह बनता है। डॉ. भार्गव ने बताया आयुर्वेद में कहा गया है कि रक्त, पित्त, क्षय, श्वांस के रोगियों को तब तक आशा नहीं त्यागनी चाहिए जब तक वासा विद्यमान है। यहां नागदोन का पौधा भी है, जिसके पत्ते पाइल्स रोग में काम आते हैं। इसी प्रकार निरगुंडी को वातशामक माना जाता है। यह दर्द निवारक होता है। जोड़ों के दर्द में फायदा पहुंचाता है। वाटिका में हल्दी का पौधा भी है जो कैंसर रोधी माना जाता है। इसमें एंटीबायोटिक के गुण होते हैं। इसी प्रकार कालमेघ का काढ़ा बुखार आने पर लिया जाता है। बुखार काे दूर करने वाली औषधियों में कालमेघ का उपयोग होता है। इसी प्रकार बला नामक पौधा है। इसकी जड़ का काढ़ा बनाते हैं। इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह बल को बढ़ाती है। हमारे यहां वाटिका में अदरक का पौधा है, जो सभी प्रकार के मसालों में काम आता है। यह तीन साल जमीन के अंदर होने पर सोंठ बन जाता है। बेलपत्र के कच्चे फल का चूर्ण बनाकर उपयोग करे तो पेट संबंधी समस्याओं को दूर करता है। हारसिंगार के पत्तों में कृमिनाशक के गुण होते हैं। यह साइटिका में भी उपयोगी होता है। इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पिलाते हैं तो दर्द में आराम मिलता है। हमारे यहां पान के पत्तों की बेल है। पान का आकार ही हृदय के समान है। यह हृदय को पोषण देता है और मुख की दुर्गंध को दूर करता है।

डॉ. भार्गव ने बताया कई प्रकार के औषधीय पौधे हमने वाटिका में लगाए हैं। इनका उपयोग औषधी के रूप में करते हैं। पंचकर्म के लिए भी आवश्यकता होने पर उपयोग करते हैं। कोई व्यक्ति इन औषधीय पौधों का उपयोग करता है तो उसे पहले चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। इनके उपयोग और विधि की जानकारी उसे होना चाहिए।

किसानों को प्रेरित कर रहे हैं-

औषधीय पौधों के महत्व को देखते हुए आयुर्वेद विभाग किसानों को जड़ी-बूटी लगाने के लिए प्रेरित कर रहा है। आयुर्वेद विभाग की प्रेरणा से किसान ऐलोवेरा, शतावरी, अश्वगंधा, सफेद मूसली आदि की खेती कर रहे हैं। हालांकि किसानों के सामने समस्या औषधियों को बेचने की है। नीमच मंडी में खरीददार है, लेकिन देवास से इसकी दूरी अधिक है। अगर बड़ी संख्या में किसान इस प्रकार की खेती करते हैं तो देवास में भी व्यापारी आकर खरीद सकते हैं।

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